Saturday, June 22, 2019

दोष तकदीर का

करता निराले काम तू,
जिनके न जानता परिणाम तू,
देखकर परिणाम,
जब कष्ट होता ज़मीर को,
देता तू दोष तब तक़दीर को।

सुरा व धूम्र पान से,
वेवक़्त खानपान से,
रोगों का घर बनाया शरीर को,
दे रहा तू दोष अब तकदीर को।

अमीरी के मद में,
रंगा रहा निजता के रंग में,
स्व की भावना लिए,
तोड़ता रहा रिश्तों की जंजीर को,
दे रहा तू दोष अब तकदीर को।

                     - अनुराधा यादव

Saturday, June 15, 2019

पापा

दुनियां में वो सबसे न्यारे,
पापा मेरे सबसे प्यारे।

अंगुली पकड़ के चलना सिखाया,
और हमें उड़ना सिखलाया,
इस दुनियां से लड़ने के,
दांव पेंच सिखाये सारे,
पापा मेरे सबसे प्यारे।

पापा ने हमे पंख दिए हैं,
मन में ये विश्वास किये हैं,
खुले आसमां में उड़ करके,
साकार करेगी सपने सारे,
पापा मेरे सबसे प्यारे।

दुनियां की दी खुशी प्रत्येक,
करके अपना रात दिन एक,
मुझको तो इस लायक बनाया,
में चमकूँ बन हजारों तारे,
पापा मेरे सबसे प्यारे।

              -  अनुराधा यादव

Friday, June 14, 2019

हँस के जी ले तू ज़रा

चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले  तू ज़रा।

संसार में चारो तरफ,
आहट हुँ सुनती आह की,
दर्द है जो आह में,
उसको समझले तू ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले तू ज़रा।

प्रेम तो इस ज़िन्दगी की,
नीव है, आधार है,
विश्वास का भवन निर्माण करके,
सच की डगर चल ले ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी ,
हँस के जी ले तू ज़रा।

है तेरा संसार जिससे,
वो निज अस्तित्व के लिए लड़ रहीं,
निर्भय हो जियें यहां बेटियां,
ऐसा जतन कर ले ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले तू ज़रा।

           -अनुराधा यादव

Tuesday, June 11, 2019

आज का सच

नफरतों की आग में झुलस रहा समाज है,

विनाश इसका इस तरह कल नहीं आज है,

स्वार्थता की अब यहाँ न रही तादात है,

अपने मतलब के बिना,कोई न सुनता दर्द की आवाज है,

कौन आज मित्र है कौन दगाबाज है ,

फर्क करना हो गया बहुत मुश्किल आज है,

प्राथमिकता दे रहा जिसको तू आज है,

छोड़ देगा कल तेरा वही मुश्किल में हाथ है,

सबको तो है लगी खुदगर्ज़ी की प्यास है,

इस लिए तू कर ले खुद से प्रयास है,

सहयोग करना बन गया ताने और अहसान का प्रयाग है,

इस समाज से हो गया सहानुभूति का ह्रास है।

                                   -अनुराधा यादव

Monday, June 10, 2019

विहरिणी

चहुँ ओर छिटकती धवल चांदनी,
वो रम्य सुहानी पतित पावनी,
पर शांत दुखित रैना है वो,
करती स्वतंत्र विहार है जो,
क्योंकि उस विहरिणी नारी का ,
उसकी तो दुनियां सारी का,
तारनहारा , पालनहारा,
प्रेमी जो था सबसे प्यारा,
जो गया यहां से वर्षों से,
कह गया था आएंगे परसों में,
वापस न हुआ क्यों अब तक है,
बस यही सोचती हर पल है,
बैठी है झरोखे पे बिखरे है केश,
इंतजार करे वो निर्मिमेष,
रैना बीत रहीं लेकिन,
प्रियतम न आता जो गया परदेश।

                         -अनुराधा यादव

Friday, June 7, 2019

झलक दीवानगी की

सारी खुशी है जिंदगी की,
सम्पूर्णता है सादगी की,
न जगह है बानगी की,
बस थोड़ी जरूरत है यहाँ,
विश्वास धैर्य और शांती की,
बस है यह थोड़ी झलक दीवानगी की।

                          -अनुराधा यादव

Thursday, June 6, 2019

जीवन का निकाय

जिंदगी संघर्ष का ही तो एक पर्याय है,

धैर्य जिंदगी का एक निश्चित उपाय है,

पुरषार्थ, जीने के लिये ,जिंदगी में एक सहाय है,

पितु मात की सेवा कर, जीने गुर गुरु ने सिखाए हैं,

संघर्ष, धैर्य, सेवा,पुरुषार्थ जीवन का एक निकाय है।

                                   -अनुराधा यादव

Saturday, May 11, 2019

माँ

दुनियां का वो पहला चेहरा,
जिस पर देती शालीनता पहरा,
निष्ठा प्रेम पहने गहना,
विचलित न होती कुछ भी हो सहना,
पहना धैर्यशीलता का चोला,
ममता का है चूनर ओढ़ा,
उस चूनर में मुझे छिपाए,
सारी खुशियाँ मुझ पर लुटाये,
विवेकशीलता उसकी पहचान,
त्याग कर वो बड़ी महान,
जन्नत है पैरों में उसके,
दुनियां की हर खुशी मिल जाये,
अपना हाथ जो सिर पर रख दे,
उसका दर्जा सबसे उच्च,
हम सब उसके सामने तुच्छ,
नम्र शीलता उसकी जान,
माँ जग में है बड़ी महान।

            -अनुराधा यादव

अनमोल संस्कृति

अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमें एक नई कहानी आगत की ।

पुरुषों में शिरोमणि राम हुए,
जग पालक वो सुखधाम हुए,
सुचिता सीता की आदर्शरूप,
तेज, चाल सब कम कर दी,
जिसने रावण के झंझावत की,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमें एक नई कहानी आगत की।

त्याग प्रेम हमें कृष्ण सिखाते,
जीवन का सद्मार्ग दिखाते,
खुद राधारानी प्रेम स्वरूपा,
निज जीवन के हर क्षण में,
व्याख्या की प्रेम की ताकत की,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमें एक नई कहानी आगत की।

एकलव्य धनुर्धर परमवीर,
ठान लिया सीखना धनुष तीर,
गुरु की मूरत के समक्ष,
समझा उसने गुरु है प्रत्यक्ष,
सीखा है चलाना धनुष बाण,
गुरु की गरिमा रखने के लिए,
अंगुष्ठ समर्पित किया गुरु को,
रख ली थी लाज गुरु की इजाजत की
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमे एक नई कहानी आगत की।

प्रह्लाद,ध्रुव और अभिमन्यु,
तारों से चमके छोटे जुगनू,
कर्तव्य धर्म और निष्ठा से,
अपनी एक निष्ठ प्रतिज्ञा से,
दुनियां को नई जागृति दी,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमे एक नई कहानी आगत की।

अनुसूइया विदुषी एक नारी,
निज सतीत्व से बाधाएं पछारीं,
निज तप बल और पतिव्रत से,
गंगा की धारा अवतरित की,
अपने आदर्श सकर्मों से,
दी नई परिभाषा हर आलम की,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमे एक नई कहानी आगत की।

परम् सुंदरी परम् पुनीता,
पतिव्रता थी परम् सुनीता,
सावित्री पति प्रेम पुजारिन,
भिड़ गई यम से कुटिया की बासिन,
है रक्षक बन पति प्राणों की,
आदर्श बनी यहां मानव की,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमे एक नई कहानी आगम की,

दानवीर वो कर्णवीर,
नियमबद्ध वो परमवीर,
उसने मित्रता निभाने को,
निज मीत का कर्ज चुकाने को,
निज धन यश बल की आहुति दी,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमें एक नई कहानी आगत की।

महर्षि दधीचि मुनी अतिज्ञानी,
देवन ने ऋषि महिमा जानी,
असुरों की जब भीड़ पड़ी,
देवन ने विनती आन करी,
तब निज अस्थियों से बज्र बनाया,
जिसने क्षीण शक्ति की,
असुरों के आगर की,
अनमोल संस्कृति भारत की,
जिसमें एक नई कहानी आगत की।

Wednesday, May 8, 2019

जीवन की राह

तुम गुणी मनुज का गुण देखो ,
देखो उसकी पहचान नहीं,

धारण कर लो तुम उस गुण को,
जिसकी की अब तक पहचान नहीं,

मत करो कर्म ऐसा कोई,
जिसके परिणाम का ज्ञान नहीं,

रोष, खुशी में आकर के,
करना किसी निर्णय का ऐलान नहीं,

अपनी अनमोल जिंदगी में,
करना किसी का अपमान नहीं,

मन की मनसा पूरित करने में,
भेजना हृदय को शमशान नहीं,

कर ले सद्कर्म यहाँ पर तू,
जिसमें लगता कोई लगान नहीं।

                      -अनुराधा यादव

Tuesday, May 7, 2019

जीवन का सफर

तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर,

मिथ्या की कभी पकड़ ली कार,
चलता है पर मिलता न द्वार,
कभी बैठ गया तू स्वार्थ की बस में,
बंध तू निज मन के वश में,
संतुष्ट न होता तेरा उदर,
तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर।

अहंकार का पथ है चुना,
पाथेय दर्प तेरे का बना,
इस लिए तू भटके सारा जहां,
सावधान हो चल ले यहां,
आसां नही जीवन की डगर,
तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर

                      -अनुराधा यादव

Monday, May 6, 2019

गर्मी आई

ऋतु गर्मी की सज कर आई,
मौसम करवट बदले, ले अंगड़ाई।

कभी चिलचिलाती धूप लगे,
कभी लपटें लू गरम की लगे,
भानू छिप जाए कभी घन की ओट,
कभी जीवन के हर वक़्त में लगे खोट,
तब ठंडे पानी की देत दुहाई,

ऋतु गर्मी की सजकर आयी,
मौसम करवट बदले, ले अंगड़ाई।

दोपहर सजीली चुभन भरी,
रातें लगतीं हैं उमस भरी,
हर पेड़ रूख मुरझा जाता,
हर जीव विकल है हो जाता,
तब बस बादल से है आस लगाई,

ऋतु गर्मी की सजकर आई,
मौसम करवट बदले, ले अँगड़ाई।

                     -अनुराधा यादव

Sunday, May 5, 2019

मां भारती

शीश साजे है शिखर,
जिससे मधुरता रही बिखर,

पुष्पों सजा कर्णफूल पहने,
मन मोहक सारे हैं गहने,

लहंगा हरे रंग में रंगा,
जो मोतियों से है सजा,

ओढ़नी गंगा की धारा,
जो तारती संसार सारा,

उसके चरण सागर पखारे,
रक्षक बने उसके ही प्यारे,

उदारता से द्वेष को वो मारती ,
एकता और प्रेम से सजी मां भारती।

                      -अनुराधा यादव

Saturday, May 4, 2019

जीवन सुगम कर ले

जो है विहित वो वहन कर ले,
दुःख दर्द यहां का सहन कर ले,
निज क्षमता का आंकलन कर ले,
रोष द्वेष का दमन कर दे,
और निज जीवन तू सुगम कर ले।

यदि पुरुषार्थ प्रेम का अनुगमन कर ले,
तो पथ का हर शूल सुमन कर ले,
यदि मातपिता को नमन कर ले,
तो वसुधा पर स्वर्ग का दर्शन कर ले,
और निज जीवन तू सुगम कर ले।

अपनी गलती पे मनन कर ले,
पराये दर्द पे तनिक चिंतन कर ले,
हर वक़्त तू इतना जतन कर ले,
कि हर एक का मन तू मगन कर ले,
और निज जीवन तू सुगम कर ले।

                           -अनुराधा यादव

Friday, May 3, 2019

सावन

मुस्करा रही है ये धरा,
रम्यता व्योम की देखो जरा,
हवाएं झूमतीं मानो पीकर सुरा,
भानु है रहा इन सबसे आंखें चुरा,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस को पावन।

काले घट घिर आये घनघोर,
हर ओर विपिन में डोले मोर,
चंद जैसे बन बैठा चोर,
छिप गया है वो घट के उस ओर,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस को पावन।

नदी,कूप,सर,झीलें डोलें,
कीट पतंगे, मेढ़क बोलें,
सागर की लहर है लेती हिलोरें,
भगिनीं राखी को प्रेम से तोलें,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस पावन।

                    -अनुराधा यादव

Tuesday, April 30, 2019

नीड़ चिड़िया का

उड़ रही हूँ आज खुश हो,
हूँ लिए मैं साथ सुख को,
लक्ष्य पूरा हो गया,
नीड़ मेरा बन गया।

होगी वारि से सिंचित धरा जब,
शरण इसमें लूंगी मैं तब,
आसरा एक बन गया,
नीड़ मेरा बन गया।

चारों दिशाएं जब कंपेंगी,
कोहरे में खुद को ढंकेंगी,
उसके लिए ये त्राण मेरा बन गया,
नीड़ मेरा बन गया।

               -अनुराधा यादव

Monday, April 22, 2019

क्यों

इस निरीह संसार में,

मैं सोचती हर बार में,

मै सफल जीवन जियूँ,

फिर भी कठिनता जिंदगी से,

है नहीं जाती ये क्यूँ।

हर वक्त इसमें चाहत संघर्ष की,

पर मैं दबी हूँ बोझ में दर्प की,

सोचती आनंद का रस मैं पियूँ,

पर चाहतें इस जिंदगी से,

है नहीं जातीं ये क्यूँ।

                    - अनुराधा यादव

जिंदगी है क्या तेरी

जिंदगी में जिंदगी से,
हसरत है क्या तेरी,

जिंदगी को जिंदगी से,
आशा है क्या तेरी,

जिंदगी में जिंदगी के लिए,
प्रवृत्ति है क्या तेरी,

जिंदगी जीने के लिए,
जागृति है क्या तेरी,

जिंदगी से जिंदगी ने,
चाहा है क्या तेरी,

जिंदगी ने  जिंदगी से,
सीखा है क्या तेरी।

           -अनुराधा यादव
           

कुर्सी की चाह

है कुर्सी की दौड़ हर तरफ,

खींचातानी पड़ी हर तरफ,

बैठने को खड़ा प्रत्येक,

पर कुर्सी है केवल एक,

कड़ी मशक्कत करते हैं सब,

साम दाम अपनाते सब,

लगे चक्कड़ी नेताओं की,

कसर निकल रहि सेवाओं की,

होड़ में कुर्सी पाने की,

कर लेते हैं साझेदारी,

हाथ में सत्ता पाने को,

मंजूर है ये कुर्सी आधी,

कुर्सी के ही चक्कर में,

लड़ रहे गठबंधन, पप्पू और मोदी,

अपना बहुमत बनवाने को,

हर घूमे गली बड़ी छोटी।

                  -अनुराधा यादव

जागृति

जीवन एक संघर्ष है,

समझा भी है जाना भी है।

संघर्ष ही इस जीवन में है,

इस सत्य को माना भी है।

कभी सुख यहाँ कभी दुःख यहाँ,

पर हर परिस्थिति में तुमको,

सामंजस्य तो बिठाना भी है।

यदि खुद को सफल बनाना है,

तो आलस्य रोग और दोषों को,

निज जीवन से भगाना भी है।

इस सकल समूचे चराचर में,

अलख प्रेम की जगाना भी है।

गर मनसा विश्व बंधुत्व की है,

तो हर एक मानव के मन में,

सद्भावना लाना भी है।

          -अनुराधा यादव

Friday, April 19, 2019

सच्ची जिंदगी

हर कदम ऐसे रखो,
कि शूल गलती का ना चुभे,
पद चिन्ह ऐसे छोड़ दो,
जो समाज को प्रेरित करे,
सज ले, संवर ले,
या नहा ले तू इत्र से,
पर सगुणों से है सुंदरता,
और सुगन्ध है सच्चरित्र से,
ढोंग, अंधभक्ति से,
खुद को बचाये रखना,
विश्वास और निज शक्ति से,
खुद को सजाये रखना,
अनमोल है ये जिंदगी,
जी ले पूरे जतन से,
कुविचार, पाप प्रवृत्ति का,
मैल धो दे तू मन से।

              -अनुराधा यादव

Tuesday, April 16, 2019

झरोखा

काठ का चोला है पाया,
चर्म धातु का चुराया,
चमकता पॉलिश लगाकर,
फिर एक कपड़े से छुपाया।

सोते हुए मुझको जो पाया,
रवि रश्मियों को है बुलाया,
रश्मियां मुझपर गिरा कर,
नींद से मुझको जगाया।

गर गर्मी ने मुझको सताया,
उसने तुरत घूंघट उठाया,
वायु को अंदर बुलाकर,
गर्मी को बाहर भगाया।

बरसात का मौसम जो आया,
बादलों का दल है आया,
वो मन लुभावन दृश्य दिखाकर,
ये झरोखा मुस्कराया।

            -अनुराधा यादव

Monday, April 15, 2019

गुलफ्शा

मासूमियत जिसमें भरी,
अब्बू की वो है परी,
संघर्षमयी ये जिंदगी,
माने खुदा की बंदिगी,
इल्तिज़ा उसकी सदा,
सद्मार्ग पर चलूँ सदा,
संवेदना इतनी भरी,
पर आलस से है खफ़ा,
जुनून उसके अक्स में,
फिर भी थोड़ी सी दुविधा के पक्ष में,
उसकी प्यारी सी मुस्कान पे,
मां बार दे निज जान है,
मां की आंखों का सितारा,
वो गुलों की है फ़िज़ा,
जिसकी चाहत कुछ करने की,
वो प्यारी सी है गुलफ्शा।

                -अनुराधा यादव

Sunday, April 14, 2019

ऊषा काल

ओस की बूंदों में लिपटी,

चादर ये घास की,

चितवत चकोर की,

चंदा से आस की,

खत्म इंतजार हुआ,

भँवरे की प्यास की,

चिड़ियों की चहक से,

पुष्पों की महक से,

रंजित है जग सारा,

क्योंकि रवि बढ़ चला,

ओर तिमि से प्रकाश की।

              -अनुराधा यादव

Saturday, April 13, 2019

संघर्ष

संघर्षमयी संसार में,
स्वार्थपन की आड़ में,
कोशिश तुझे गिरने की,
हर कोई करे हर बार में।

गर चाहिये खुशी साकार में,
तो मजबूती कर आधार में,
चाहत जो सफलता पाने की,
तो परिवर्तन के व्यवहार में।

जीवन की लूटमार में,
मत बैठना तू हार में,
हर बाजी इस जीवन की,
तू खेलना हर हाल में।

                      -अनुराधा यादव

Friday, April 12, 2019

मन

जलधि रूपी जीवन में,
नौका एक है तन ये,

मन नाविक है बन के बैठा,
जो चाहे वो करता रहता,

ज्वार आता जब भी है,
प्रभाव दिखाए तब ही यह,

मात देता लहरों को,
निराधार करता महरों को,

बस दिशाहीन होकर के,
विवेक अपना खोकर के,

स्वतंत्र घूमता है,
बस खुद में झूमता है,

संयम नियम जो खुद का,
एक चाबुक बस उसका,

काबू में उसको लाता,
मुश्किल से जो मिल पाता।

              -अनुराधा यादव

Thursday, April 11, 2019

घटा का घट

श्याम वर्ण पहना लिवास,

लगता जैसे मेहमान खास,

आवाज भयंकर लिये हुए,

तीव्र गर्जना करता है,

जब क्रोध में निकले चिंगारी,

मानो विद्युत का झटका है,

घट अति विशाल है किए हुए,

जो सहस्त्र घटों से भरे हुए,

घन का घट जब नयनों देखा,

जिसका कोई न है लेखा,

घट जीवों का बैठा जाता,

किसने तो है इसको भेजा।

                      - अनुराधा यादव

Wednesday, April 10, 2019

विद्यालय

विद्या अर्जन हो यहाँ,
सत्य दर्शन हो यहाँ,
ईमान, निष्ठा , प्रेम की,
हर वक्त वर्षा हो यहाँ,

न कोई छोटा यहाँ,
न दोष अमीरी का यहाँ,
बस एक मानव जाति की,
बात होती है यहां,

गुरु की गुरुता है यहां,
हर समस्या का हल यहाँ,
जीवन को सरलता से जीने की,
मिलती सुगम है विधि यहाँ,

मिलता है आनन्द वहाँ,
होता है विद्यालय जहाँ।

               -अनुराधा यादव

Monday, April 8, 2019

परिवर्तन

परिवर्तन शील है यह समाज,
माना सबने इसको है आज,
समाज से इस परिवर्तन ने,
दूसरों की संस्कृति अर्जन ने,
स्व संस्कृति आज भुला दी है
मानो चिर निद्रा में सबने,
संस्कृति तो कहीं सुला दी है,
कुर्ता धोती बना कोट पैंट,
खुशबू गुलाब की बन गई सेंट,
दातून बन गया टूथपेस्ट,
ऐनक पहने बनते हैं श्रेष्ठ,
चौपाल तो कहीं खो गई है,
बस मोबाइल में दुनियां गुम हो गई है,
सहयोग,सम्मान, सत्कार, निष्ठा,
सब शांत दुखी हो देख रहे,
धन,धनिक,धुनी की है प्रतिष्ठा,
जो स्वार्थ से जीवन सेक रहे,
दूध हो गया मटमैला,
घी का तो खतम हुआ खेला,
लंहगा चोली जो पहनावा,
है उसको क्या बुलावा आया,
जो चला गया समाज से है,
तन अब छोटे वस्त्रों से साजते हैं,
हिंदी हिन्द की राजभाषा,
उसका भी महत्व घट रहा है,
अंग्रेजों की अंग्रेजी का,
दिन दिन ही जोर बढ़ रहा है।

                        -अनुराधा यादव

Thursday, April 4, 2019

स्वामी विवेकानंद जी

संसार में सद्भावना का,
विवेक, विनम्र , विद्वानता का,
जल सा प्रवाह जिसने किया,
मन तृप्त निज तप से किया,
अनुभव कराया आनन्द का,
भारत माँ का लाल,
वो विवेकानंद था।

प्रतिभा का कायल जग सारा,
हिन्द का वो न्यारा सितारा,
हिन्द की तो हिन्दवी को,
अपनी पूरी जिंदगी को,
रस्ता दिखाया उन्नति और सानन्द का,
भारत माँ का लाल,
वो विवेकानन्द था।

लोकतंत्र का महापर्व

लोकतंत्र के देश में महापर्व का उत्साह,
हर एक प्रान्त और शहर में रैलियों का प्रवाह,
कोई कहता विकास होगा,
अत्याचार का विनाश होगा,
कोई तो गरीबी हटाने को,
अपनी सरकार बनाने को,
दे रहा प्रलोभन जनता को,
जाति पांति को अपना कर,
दे रहा चुनौती समता को,
हर दल के नेता आशा से,
जनता की तरफ देखते हैं,
पर शांत, आनन्दित जनमानस,
निज मन का भेद न खोलते हैं,
किसी को इसका भान नही,
परिणामों का ज्ञान नहीं,
फिर भी हर दल पहले से ही,
अपना बहुमत बतलाता है,
हर नेता इस समय दुविधा में,
अपना ये समय बिताता है।
                      -अनुराधा यादव

जाग रे

जाग रे प्राणी जगत में,
कर ले कुछ रहते वखत में,
रेत सी इस जिंदगी में,
उस खुदा की बंदिगी में,
जी ले तू इस जिंदगी को,
वरना उलझेगी नखत में,
जाग रे प्राणी जगत में।

मैं जिंदगी से दूर कर दे,
जो जिंदगी को नष्ट कर दे,
जिससे उद्गम हो क्रोध का,
काया जीर्णित हो फ़क़त में,
जाग रे प्राणी जगत में।

पालन कर तू सत्य निष्ठा प्रेम का,
हर एक व्रत और नेम का,
अच्छाई को पहचान ले,
न भूल के तू परख में,
जाग रे प्राणी जगत में,
कर ले कुछ रहते वखत में।

                  अनुराधा यादव

एक शक्ति

ब्रह्मांड के हर नियम की,
हर चीज के संयम की,
संचालक एक शक्ति है,
निराकार वो शक्ति,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

चराचर का प्राणी कोई,
नियम भंग करता कोई,
कठोर मिलता दंड है,
निराकार वो शक्ति,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

मान ले जिस रूप में,
साकार बनती अनुरूप में,
सच्ची तेरी यदि भक्ति है,
निराकार वो शक्ति ,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

उसकी अपार क्षमता का,
सभी के लिए समता का,
कायल तो हर एक व्यक्ति है,
निराकार वो शक्ति ,
कृपा के दे तो समझो मुक्ति है।

Friday, March 8, 2019

जीवन का सत्य

जीवन का अंतिम सत्य यही,
यदि जन्म लिया पृथ्वी पर है,
तो अवश्य मरण निश्चित है यही,
जीवन के हर रंग द्वेष का,
हर एक देश हर एक वेश का,
अंतिम क्षण वह आता है,
जो जीवन में नए आदर्शों,
संस्कृति को जन्म दिलाता है,
मानव प्राणी है इसी धरा का,
वो भी तो मुंह देखता जरा का,
चाहे कितना मजबूत त्राण हो,
पर बचा न सकता वो भी प्राण को,
जो वस्तु यहां उत्पन्न हुई,
वो अपने समय पे नष्ट हुई,
सूरज , चन्दा और तारे भी,
पृथ्वी जो पालक हमारे भी,
उस दिवस नष्ट हो जाएंगे,
जिस दिन वो अपने जीवन का,
वो अंतिम क्षण पा जाएंगे,
जन्म मरण के नियमों का,
उल्लेख सृष्टि के संविधान में है,
पर जीवन के सद्कर्मों का,
वास हर एक के जुबान पे है,
इस लिए मरण से पहले ही,
जीवन को सरल बनाओ तुम,
निष्ठा, विवेक बुद्धिमानी की,
जीवन में मिसाल बनाओ तुम।

                  -अनुराधा यादव

शिष्टाचार

जीवन में आदर्श है लाता,
और जीवन को सजग बनाता,
प्रेम,विनय हैं जिगरी भाई,
और निष्ठा से हुई सगाई,
बड़ों की सेवा पहला काम,
अतिथी का करता सम्मान,
सच्चाई सच्ची है मीत,
जिससे मन वो लेता जीत,
बन्धुत्वा का करे प्रचार,
सद्भावना का होता प्रसार,
प्रेम भाव वह जाग्रत करता,
दिलों से हटाता वैमनस्यता,
सदाचार का करे आचार,
कहते उसको शिष्टाचार।

               -अनुराधा यादव

चूड़ियाँ

सुहागिनों की एक निशानी,
पहनतीं इनको दीवानी,
बावरी वो प्रेम में,
निष्ठा है व्रत नेम में,
सोलह श्रृंगार में है सजी,
रति रूप की महिमा घटी,
जब हैं लखी ये चूड़ियाँ,
दैदीप्य थी वो चूड़ियाँ,
सजनी का श्रृंगार है,
और हाथों का सरताज हैं,
दुल्हन के जब हाथ खनके,
लगता है मणि और मनके,
यदि पड़े नर को पहनानी,
तो वो है कायरता की निशानी।

                 -अनुराधा यादव

Tuesday, March 5, 2019

अवकाश

रोमांच तन में, उत्साह मन में है भरा,
उत्साह नभ में और प्रफुल्लित है धरा,
मन रहता जिसकी चाह में,
अवकाश वो आज मिल गया।

हैं वार बीते हैं बहुत निजगृह नहीं हूँ मैं गया,
ममता भरा स्नेह का वो हाथ सिर न रखा गया,
सब कर रहा जिस आश में,
अवकाश वो आज मिल गया।

आज मन को सम्बल मिल रहा,
विचलित हो दिन बहुत से वो कह रहा,
घर चलोगे किस माह में,
राह जिसकी तक रहा अवकाश वो आज मिल गया।

                          -  अनुराधा यादव

Monday, March 4, 2019

रजाई

कोमल है वो मुलायम,
कितनी खुशी किये है कायम,
थकहार कर जब मैं तो,
सर्दी में कंपकंपाती,
आगोश में वो फिर तो,
मुझको तो है बुलाती,
आलस्य की है देवी,
पर मेरी है वो सेवी,
उठना जो चाहो गर तुम,
उठने नहीं वो देती,
स्पर्श उसका करते ही,
मन बांध वो है देती,
निद्रा सखी है उसकी,
उसको बुला है लेती,
मन, निद्रा, रजाई,
जब एक साथ आईं,
तब आत्मचिंतन से मैं,
कुछ भी न कर पाई,
फिर तो जुबान पर है,
बस आती जम्हाई,
चिर स्वप्न के तो देश में,
भेज वो है देती,
हारी हुई आत्मा,
उसकी शरण ले लेती।

           -अनुराधा यादव

Sunday, March 3, 2019

शिव

सत्य शिव है, शिव है सुंदर,
नीलकंठ वो चन्द्रशेखर,

हाथ डमरू भुजंग माला,
शीश पर गंगा की धारा,

भस्मी रमाए देह पर,
रहता वो कैलाश पर,

नंदी सवारी है लिये,
सिर चंद्र धारण है किये,

हलाल विष तो पी लिया,
और धरती का तारण किया,

गौरी उसकी शक्ति है,
विश्वास उसका भक्ति है,

संसार में जग त्राण वो,
संहारकर्ता मान वो,

बेलपत्र,भांग चूर का,
रसपान करता धतूर का,

पहने वो बाघ की छाल है,
लटधारी वो महाकाल है।
   
               -अनुराधा यादव

Saturday, March 2, 2019

घड़ी बताए

टिक टिक करती रहे रात दिन,
हमें बताये हर पल हर क्षण,
सुबह सबेरे हमसे बोले,
समय हुआ अब जगने का,
वह प्यारा स्वप्न छोड़ने का,
सही समय पर उठे आज हम,
कुल्ला दातून किये आज हम,
अब कहने लगी घड़ी थी मुझसे,
समय हुआ विद्यालय जाने का,
विद्या धन अर्जित करने का,
कर रहे थे हम जब हँसी ठिठोली,
बच्चे थे सारे हमजोली,
तभी घड़ी ने हमें बताया,
समय हुआ अब पढ़ने का,
अपना कर्तव्य समझने का,
करी पढ़ाई खाना खाया,
तभी घड़ी ने हमें बताया,
समय हुआ अब सोने का,
सपनों के देश में जाने का,
टिक टिक करती रहे रात दिन,
हमें बताये हरपल हर क्षण।

                 -अनुराधा यादव