Friday, April 12, 2019

मन

जलधि रूपी जीवन में,
नौका एक है तन ये,

मन नाविक है बन के बैठा,
जो चाहे वो करता रहता,

ज्वार आता जब भी है,
प्रभाव दिखाए तब ही यह,

मात देता लहरों को,
निराधार करता महरों को,

बस दिशाहीन होकर के,
विवेक अपना खोकर के,

स्वतंत्र घूमता है,
बस खुद में झूमता है,

संयम नियम जो खुद का,
एक चाबुक बस उसका,

काबू में उसको लाता,
मुश्किल से जो मिल पाता।

              -अनुराधा यादव

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