चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले तू ज़रा।
संसार में चारो तरफ,
आहट हुँ सुनती आह की,
दर्द है जो आह में,
उसको समझले तू ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले तू ज़रा।
प्रेम तो इस ज़िन्दगी की,
नीव है, आधार है,
विश्वास का भवन निर्माण करके,
सच की डगर चल ले ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी ,
हँस के जी ले तू ज़रा।
है तेरा संसार जिससे,
वो निज अस्तित्व के लिए लड़ रहीं,
निर्भय हो जियें यहां बेटियां,
ऐसा जतन कर ले ज़रा,
चार दिन की ज़िंदगानी,
हँस के जी ले तू ज़रा।
-अनुराधा यादव
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