Friday, May 3, 2019

सावन

मुस्करा रही है ये धरा,
रम्यता व्योम की देखो जरा,
हवाएं झूमतीं मानो पीकर सुरा,
भानु है रहा इन सबसे आंखें चुरा,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस को पावन।

काले घट घिर आये घनघोर,
हर ओर विपिन में डोले मोर,
चंद जैसे बन बैठा चोर,
छिप गया है वो घट के उस ओर,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस को पावन।

नदी,कूप,सर,झीलें डोलें,
कीट पतंगे, मेढ़क बोलें,
सागर की लहर है लेती हिलोरें,
भगिनीं राखी को प्रेम से तोलें,
क्योंकि आया है फिर से ये सावन,
जो करता मन मानस पावन।

                    -अनुराधा यादव

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