ऋतु गर्मी की सज कर आई,
मौसम करवट बदले, ले अंगड़ाई।
कभी चिलचिलाती धूप लगे,
कभी लपटें लू गरम की लगे,
भानू छिप जाए कभी घन की ओट,
कभी जीवन के हर वक़्त में लगे खोट,
तब ठंडे पानी की देत दुहाई,
ऋतु गर्मी की सजकर आयी,
मौसम करवट बदले, ले अंगड़ाई।
दोपहर सजीली चुभन भरी,
रातें लगतीं हैं उमस भरी,
हर पेड़ रूख मुरझा जाता,
हर जीव विकल है हो जाता,
तब बस बादल से है आस लगाई,
ऋतु गर्मी की सजकर आई,
मौसम करवट बदले, ले अँगड़ाई।
-अनुराधा यादव
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