शीश साजे है शिखर,
जिससे मधुरता रही बिखर,
पुष्पों सजा कर्णफूल पहने,
मन मोहक सारे हैं गहने,
लहंगा हरे रंग में रंगा,
जो मोतियों से है सजा,
ओढ़नी गंगा की धारा,
जो तारती संसार सारा,
उसके चरण सागर पखारे,
रक्षक बने उसके ही प्यारे,
उदारता से द्वेष को वो मारती ,
एकता और प्रेम से सजी मां भारती।
-अनुराधा यादव
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