Tuesday, April 16, 2019

झरोखा

काठ का चोला है पाया,
चर्म धातु का चुराया,
चमकता पॉलिश लगाकर,
फिर एक कपड़े से छुपाया।

सोते हुए मुझको जो पाया,
रवि रश्मियों को है बुलाया,
रश्मियां मुझपर गिरा कर,
नींद से मुझको जगाया।

गर गर्मी ने मुझको सताया,
उसने तुरत घूंघट उठाया,
वायु को अंदर बुलाकर,
गर्मी को बाहर भगाया।

बरसात का मौसम जो आया,
बादलों का दल है आया,
वो मन लुभावन दृश्य दिखाकर,
ये झरोखा मुस्कराया।

            -अनुराधा यादव

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