Monday, June 10, 2019

विहरिणी

चहुँ ओर छिटकती धवल चांदनी,
वो रम्य सुहानी पतित पावनी,
पर शांत दुखित रैना है वो,
करती स्वतंत्र विहार है जो,
क्योंकि उस विहरिणी नारी का ,
उसकी तो दुनियां सारी का,
तारनहारा , पालनहारा,
प्रेमी जो था सबसे प्यारा,
जो गया यहां से वर्षों से,
कह गया था आएंगे परसों में,
वापस न हुआ क्यों अब तक है,
बस यही सोचती हर पल है,
बैठी है झरोखे पे बिखरे है केश,
इंतजार करे वो निर्मिमेष,
रैना बीत रहीं लेकिन,
प्रियतम न आता जो गया परदेश।

                         -अनुराधा यादव

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