Monday, March 4, 2019

रजाई

कोमल है वो मुलायम,
कितनी खुशी किये है कायम,
थकहार कर जब मैं तो,
सर्दी में कंपकंपाती,
आगोश में वो फिर तो,
मुझको तो है बुलाती,
आलस्य की है देवी,
पर मेरी है वो सेवी,
उठना जो चाहो गर तुम,
उठने नहीं वो देती,
स्पर्श उसका करते ही,
मन बांध वो है देती,
निद्रा सखी है उसकी,
उसको बुला है लेती,
मन, निद्रा, रजाई,
जब एक साथ आईं,
तब आत्मचिंतन से मैं,
कुछ भी न कर पाई,
फिर तो जुबान पर है,
बस आती जम्हाई,
चिर स्वप्न के तो देश में,
भेज वो है देती,
हारी हुई आत्मा,
उसकी शरण ले लेती।

           -अनुराधा यादव

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