Monday, April 8, 2019

परिवर्तन

परिवर्तन शील है यह समाज,
माना सबने इसको है आज,
समाज से इस परिवर्तन ने,
दूसरों की संस्कृति अर्जन ने,
स्व संस्कृति आज भुला दी है
मानो चिर निद्रा में सबने,
संस्कृति तो कहीं सुला दी है,
कुर्ता धोती बना कोट पैंट,
खुशबू गुलाब की बन गई सेंट,
दातून बन गया टूथपेस्ट,
ऐनक पहने बनते हैं श्रेष्ठ,
चौपाल तो कहीं खो गई है,
बस मोबाइल में दुनियां गुम हो गई है,
सहयोग,सम्मान, सत्कार, निष्ठा,
सब शांत दुखी हो देख रहे,
धन,धनिक,धुनी की है प्रतिष्ठा,
जो स्वार्थ से जीवन सेक रहे,
दूध हो गया मटमैला,
घी का तो खतम हुआ खेला,
लंहगा चोली जो पहनावा,
है उसको क्या बुलावा आया,
जो चला गया समाज से है,
तन अब छोटे वस्त्रों से साजते हैं,
हिंदी हिन्द की राजभाषा,
उसका भी महत्व घट रहा है,
अंग्रेजों की अंग्रेजी का,
दिन दिन ही जोर बढ़ रहा है।

                        -अनुराधा यादव

No comments:

Post a Comment