Sunday, April 14, 2019

ऊषा काल

ओस की बूंदों में लिपटी,

चादर ये घास की,

चितवत चकोर की,

चंदा से आस की,

खत्म इंतजार हुआ,

भँवरे की प्यास की,

चिड़ियों की चहक से,

पुष्पों की महक से,

रंजित है जग सारा,

क्योंकि रवि बढ़ चला,

ओर तिमि से प्रकाश की।

              -अनुराधा यादव

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