रोमांच तन में, उत्साह मन में है भरा,
उत्साह नभ में और प्रफुल्लित है धरा,
मन रहता जिसकी चाह में,
अवकाश वो आज मिल गया।
हैं वार बीते हैं बहुत निजगृह नहीं हूँ मैं गया,
ममता भरा स्नेह का वो हाथ सिर न रखा गया,
सब कर रहा जिस आश में,
अवकाश वो आज मिल गया।
आज मन को सम्बल मिल रहा,
विचलित हो दिन बहुत से वो कह रहा,
घर चलोगे किस माह में,
राह जिसकी तक रहा अवकाश वो आज मिल गया।
- अनुराधा यादव
No comments:
Post a Comment