तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर,
मिथ्या की कभी पकड़ ली कार,
चलता है पर मिलता न द्वार,
कभी बैठ गया तू स्वार्थ की बस में,
बंध तू निज मन के वश में,
संतुष्ट न होता तेरा उदर,
तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर।
अहंकार का पथ है चुना,
पाथेय दर्प तेरे का बना,
इस लिए तू भटके सारा जहां,
सावधान हो चल ले यहां,
आसां नही जीवन की डगर,
तय हो रहा जीवन का सफर,
कभी सुख की गली और दुख के नगर
-अनुराधा यादव
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