नफरतों की आग में झुलस रहा समाज है,
विनाश इसका इस तरह कल नहीं आज है,
स्वार्थता की अब यहाँ न रही तादात है,
अपने मतलब के बिना,कोई न सुनता दर्द की आवाज है,
कौन आज मित्र है कौन दगाबाज है ,
फर्क करना हो गया बहुत मुश्किल आज है,
प्राथमिकता दे रहा जिसको तू आज है,
छोड़ देगा कल तेरा वही मुश्किल में हाथ है,
सबको तो है लगी खुदगर्ज़ी की प्यास है,
इस लिए तू कर ले खुद से प्रयास है,
सहयोग करना बन गया ताने और अहसान का प्रयाग है,
इस समाज से हो गया सहानुभूति का ह्रास है।
-अनुराधा यादव
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