Thursday, February 28, 2019

जल की समस्या

धरा पे जो है अमूल्य निधी,
सम्पूर्ण जीवन की क्रियाविधी,
अमृत के जैसा गुण उसका,
शीतल , निर्मल स्वभाव उसका,
जग में विस्तारण है ऐसे,
चादर विस्तर को ढके जैसे,
निर्मल,शीतल और शुद्ध जल,
बढ़ाता जीवन में बुद्धि बल,
संसार गया आधुनिकता में,
औद्योगिकता अब व्याप्त हुई,
संसार के वासी भूल गए,
जल बदल रहा निर्ममता में,
अमृत को विष में बदल रहे,
अब भी गलती न समझ रहे,
जो बचा हुआ पीने का जल,
उसको वो बहा रहे पल - पल,
अनभिज्ञ नहीं परिणाम से हैं,
फिर भी बर्बाद कर रहे जल,
जल ही जीवन है कहते सब,
पर उसी को अशुद्ध कर रहे अब।

                   -  अनुराधा यादव

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