रोशन करता धरा निशा में,
छिटक चांदनी हर एक दिशा में,
धवल चांदनी फैलाता है,
शीतलता तब ले आता है,
आकार,रंग स्थिर नहीं उसका,
जगह एक वो कभी न रुकता,
चंद्र कलाएं दिखाकर के,
प्रदक्षिणा धरा की वो करके,
कभी पूर्ण रूप दिखलाता,
पूरी तरह कभी छिप जाता,
सूरज की है असीम कृपा,
जो मयंक चमकाता है,
वही तेज फिर पृथ्वी पर,
शीतलता बन कर आता है,
इस गुण के तो कारण ही,
शिव शीश पे चन्द्र सुशोभित है,
उसकी तो धवल चांदनी पर,
चकोर धरा का मोहित है,
राकेश , शशि, सारंग,इंदु,
द्विजराज भी इसको कहते हैं,
लेकिन भारत के बच्चे अब भी,
चंदा मामा इसको कहते हैं।
-अनुराधा यादव
No comments:
Post a Comment