मैं धरती से हूँ उपजी,
लाती बहार मैं तो सुख की,
क्षुदा मिटाती हर जन की,
मैं एक बाली हूँ गेहूँ की।
धरा की गोद में मैं पलती,
सर्दी पालन पोषण करती,
चर्चा है कोहरे से स्नेह की,
मैं एक बाली हूँ गेहूँ की।
एक बात कहूँ अपने मन की,
हूँ कृषकों की मैं छोटी लड़की,
साथिन है फली एक सरसों की,
मैं एक बाली हूँ गेहूँ की।
लाती हूँ खुशियां होली की,
जो मस्त बयार ठिठोली की,
ये खुशियां तो हैं सतरंगी,
मैं एक बाली हूँ गेहूँ की।
-अनुराधा यादव
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