Sunday, February 3, 2019

हिमालय

अचल स्थिर वो खड़ा है,
जगत में सबसे बड़ा है,

सुनती हूँ पृथ्वी से उसकी दास्तां को,
चोटियां तो छू रहीं हैं आसमां को,

वस्त्र धारण हैं किए उसने धवल,
लगता है अभी-अभी पहने नवल,

आदित्य अपनी रश्मियां बिखेरता है जब,
श्रृंगार ये तो करता है रश्मियों से तब,

चंद्रमा की चांदनी बढ़ती है इसकी धवलता,
तब इसके सौंदर्य की बढ़ती है प्रबलता,

संसार में इस दृश्य की ,
कोई जगह है ना मिली,

गंगा का निर्माण कर्ता,
पालनपोषण वो ही करता,

अपने में वृद्धि करना जिसका तो काम है,
सुदृश्य, कर्णप्रिय है जो हिमालय उसका नाम है।

                          -अनुराधा यादव

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