ये ढेर रुई का आसमान में कहाँ से आया,
इतना बड़ा ढेर तो किसने यहाँ लगाया,
मानो गिरि ये बना हुआ है,
आसमान में खड़ा हुआ है,
ये गद्दे जैसा मखमली,
कोमलता अपने में रख ली,
सूरज भी तो दुबक गया है,
इस रुई के ढेर में गुम गया है,
कोई खेल ये ढेर खेल रहा है,
मन मस्त मगन हो विचर रहा है,
तभी आसमान से बूंदे आईं,
मुझे लगा, बूँदों ने की कोई लरिकाईं,
लेकिन जब बूंदों को गिरते देर हो गई,
पानी से जब गली भर गई,
तब दादा जी ने समझाया,
ये तो बादल था, जिसने पानी बरसाया।
-अनुराधा यादव
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