संसार के संजाल में,
मानव घिरा हर हाल में,
हैं यहाँ सब एक जैसे,
फिर भी छोटे बड़े हैं साक में,
यहां लाखों करोड़ो जीव है
पर मनुज उत्कृष्ट बुद्धि,है आगे उत्पात में,
उसका हर जीव पर तो है नियंत्रण,
पर मानव का मन नहीं है हाथ में,
प्रकृति जो पालन कर्ता,डर नहीं है उसे,
इसके साथ करने खिलवाड़ में,
प्रकृति के चक्षुओं से अश्रु धारा बह रही,
नष्ट मेरे होने से तू रहेगा किस हाल में,
पर मनुज न समझे,
न कमी कर रहा अपनी चाल में,
संसार के संजाल में ,
मानव घिरा हर हाल में।
-अनुराधा यादव
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