Thursday, February 28, 2019

जल की समस्या

धरा पे जो है अमूल्य निधी,
सम्पूर्ण जीवन की क्रियाविधी,
अमृत के जैसा गुण उसका,
शीतल , निर्मल स्वभाव उसका,
जग में विस्तारण है ऐसे,
चादर विस्तर को ढके जैसे,
निर्मल,शीतल और शुद्ध जल,
बढ़ाता जीवन में बुद्धि बल,
संसार गया आधुनिकता में,
औद्योगिकता अब व्याप्त हुई,
संसार के वासी भूल गए,
जल बदल रहा निर्ममता में,
अमृत को विष में बदल रहे,
अब भी गलती न समझ रहे,
जो बचा हुआ पीने का जल,
उसको वो बहा रहे पल - पल,
अनभिज्ञ नहीं परिणाम से हैं,
फिर भी बर्बाद कर रहे जल,
जल ही जीवन है कहते सब,
पर उसी को अशुद्ध कर रहे अब।

                   -  अनुराधा यादव

Wednesday, February 27, 2019

वीर अभिनंदन

जांबाज खड़ा सीना ताने,
मन में बस एक ही जिद ठाने,
पग भारत में न धरने दूंगा,
घुसने से पहले भारत में,
दम दुश्मन का मैं ले लूंगा,
मन में प्रतिशोध की ज्वाल लिए,
और होश से उसने वार किए,
और मार गिराया दुश्मन को,
भारत माँ के जयकार किये,
फौलादी जिस्म उस वीर का है,
जिसमें अगम्य वास ज़ीर का है,
आँखों में दृढ़ता भरी हुई,
हाथों में वास शमशीर का है,
उस वीर को नमन और वंदन है,
वो भारत माँ का वीर सपूत अभिनंदन है।

                            -अनुराधा यादव

Tuesday, February 26, 2019

शौर्य वीर जवानों का

निशा शांत और देख रही,
जाग रहे भारत के प्रहरी,
तीसरा पहर बीतने को था,
सब ओर शान्ति का मंजर था,
भारत के बेटे देशभक्त,
न्योछावर जिनका हर बूँद रक्त,
घुस गए पाक की सीमा में,
जब तक तो पाक संभल पाता,
सकुशल लौटे निज सीमा में,
बदला है लिया शहादत का,
फल मिला देश को इबादत का,
नभ सेना के वीर जवानों ने,
अपना ये शौर्य दिखाया है
आतंकवाद का 12 वें दिन,
त्रियोदशी संस्कार कराया है,
बारूद परोसा भोजन में,
और धुँआ उन्हें तो पिलाया है,
केवल नभ सेना के वीरों ने,
ओ पाक! तुझे नेस्तनाबूद किया,
गर जल थल नभ की शक्ति मिल जाये,
समझना तुझे बरबाद किया,
आतंकवाद के आकाओं,
देख ली शक्ति की झाँकी है,
अभी भारत के वीरों में,
जल थल का पराक्रम वांकी है।

                     - अनुराधा यादव

पुनर्निर्माण भारत का

पैर रखा आधुनिकता में,
अब खड़ा होना है हमें,

जरूरत पूरी कर सकें,
आत्मनिर्भर बनना है हमें,

यदि देश को आगे बढ़ाना,
तो साथ चलना है हमें,

अखण्डता बचानी देश की,
तो समन्वय रखना है हमें,

देशभक्ति सदभावना की,
ज्योति जलाना है हमें,

उस ज्योतिपुंज के तेज से,
रूढ़ियाँ मिटाना है हमें,

संस्कृति हमारे देश की,
फिर से लौटाना है हमें,

भारत को फिर से विश्व का,
गुरुवर बनाना है हमें।

              -अनुराधा यादव

Sunday, February 24, 2019

माता पिता

हर मुमकिन प्रयास से,
तेरा सँवारते संसार हैं,

अपनी हर खुशी तुझपे,
देते निसार हैं,

वो तेरी जिंदगी में हरदम,
चाहते वृद्धि और प्रसार हैं,

कमियां हो लाख तुझमें,
फिर भी करते दुलार हैं,

उनका तो तुझसे ही,
जगसंसार है,

देखना भगवान को यदि,
रूप उनका निहार है,

माता की ममता,
अगाध और अपार है,

पिता के स्नेह का,
आकाश सा प्रसार है,

माता-पिता के चरणों में,
स्वर्ग का विस्तार है,

माँ बाप का आशीष तो,
रक्षा कवच तुम्हार है।

             -अनुराधा यादव

Saturday, February 23, 2019

चंद्रमा

रोशन करता धरा निशा में,
छिटक चांदनी हर एक दिशा में,

धवल चांदनी फैलाता है,
शीतलता तब ले आता है,

आकार,रंग स्थिर नहीं उसका,
जगह एक वो कभी न रुकता,

चंद्र कलाएं दिखाकर के,
प्रदक्षिणा धरा की वो करके,

कभी पूर्ण रूप दिखलाता,
पूरी तरह कभी छिप जाता,

सूरज की है असीम कृपा,
जो मयंक चमकाता है,

वही तेज फिर पृथ्वी पर,
शीतलता बन कर आता है,

इस गुण के तो कारण ही,
शिव शीश पे चन्द्र सुशोभित है,

उसकी तो धवल चांदनी पर,
चकोर धरा का मोहित है,

राकेश , शशि, सारंग,इंदु,
द्विजराज भी इसको कहते हैं,

लेकिन भारत के बच्चे अब भी,
चंदा मामा इसको कहते हैं।

              -अनुराधा यादव

Friday, February 22, 2019

घर

मेरा जिसमें स्वर्ग समाता,
भाई, बहन,पिता और माता,
वो पावन मंदिर के जैसा,
घर मेरा जो मुझको भाता।

जीने की वो कला सिखाता,
जीवन में स्थायित्व है लाता,
पम्परायें रखे संजोकर,
घर मेरा जो मुझको भाता।

बचपन की हर याद संजोता,
जीवन की माला में पिरोता,
पूर्व जनों का ज्ञान समाये,
घर मेरा जो मुझको भाता।

मन कभी अशान्त हो जाता,
तब मन में वह शांति है लाता,
सद्भावना मुझमें लाये,
घर मेरा जो मुझको भाता।

निष्ठा,प्रेम का पाठ पढ़ाता,
जीवन में सद्मार्ग दिखाता,
माता पिता का प्रेम समाये,
घर मेरा जो मुझको भाता।

               -अनुराधा यादव

Thursday, February 21, 2019

भाष्कर

अद्भुत तेज व्याप्त उसमें,
रोशन करता जग पलभर में,
अगाध रश्मियों को साथ लिए,
आगे चलता है वह सब में।
तिमि से तो शत्रुता है उसकी,
उस तेज पुंज के आगे तो,
तिमि की ठहर प्रबलता नहीं सकती,
जग में विसरित व्यापकता से,
पालक वह है निजक्षमता से,
भोजन बनवाता पौधों का,
जो जीवों को मिलता सुगमता से,
बिन सूर्य जीवन की कल्पना नहीं,
तिमिरमयी इस पृथ्वी पर,
जीवों की कोई रचना ही नहीं,
यदि सूर्य नही ब्रह्मांड में है,
तो जीवन का कोई असितित्व नहीं,
अद्भुत क्षमता के कारण ही,
देव की पदवी दी उसको,
भारत में सभी तो जग कर,
करबद्ध नमन करते उसको,
स्नान ध्यान पूजा करके,
जल अर्घ्य रोज देते उसको।

                  -अनुराधा यादव

Wednesday, February 20, 2019

माता का लाल वो है

कुल का चिराग जो है,
सबका अनुराग जो है,
पापा का त्याग जो है,
माता का लाल वो है।

वंश की तो छवि उससे,
प्रिया की सुरभि उससे,
बहिन के जीवन की ढाल जो है,
माता का लाल वो है।

गुरुओं की वीणा का तार जो है,
देश की प्रगति की झंकार जो है,
भारत माता की रक्षा की ढाल जो है,
माता का लाल वो है।

रुख़सत हुआ छोड़ देह,संसार जो है,
देश हित में करता जान निसार जो है,
त्याग,बलिदान, वीरता की मिसाल जो है,
माता का लाल वो है।

                              -अनुराधा यादव
 

Tuesday, February 19, 2019

अजन्मी बेटी

हर घड़ी का इंतजार है,
वो जीने को तैयार है,
उतावली तो हो रही थी,
देखने को सतरंगी संसार है।

मन में यही विचार है,
होगा कैसा तो जीवन सार है,
पर क्या पता था उसको,
जीवन से पहले ही उसके दुश्मन हजार हैं।

वो अजन्मी तो बेटी एक करती सवाल है,
क्यों दुनियां में आना मेरा अपराध है,
वाह रे ओ दुनियां क्या तेरा कमाल है,
जहाँ जीवन से पहले ही होता हलाल है।

ओ दुनियां वालो सुन लो मेरी पुकार है,
जन्मीं, अजन्मी बेटियों पे क्यों करते अत्याचार है,
जो सृष्टि का रचयिता उसे क्यों दिया बिसार है,
बेटियों के सद्गुणों की ज्वाल से ये जगमग संसार है।

                                     -अनुराधा यादव

Monday, February 18, 2019

वक़्त

वक़्त जो निकल गया,
वो वक़्त फिर न आएगा,
वो वक़्त तेरी आँखों को ,
हर वक्त नम कराएगा,
हर वक़्त मन ये सोचेगा,
मैंने वक़्त क्यों गँवाया,
वक़्त रहते कार्य मैंने,
पूर्ण क्यों नहीं कर पाया,
अब वक़्त तो निकल गया,
पर हाथ कुछ न आया,
मैं वक़्त को तो कोसता,
खुद कुछ नहीं कर पाया,
मन में अब विचार है,
जो वक़्त मेरा रह गया,
हर वक़्त ऐसा काम कर,
साथ पकड़ उस वक्त का,
जो वक़्त आगे निकल गया,
फिर देख तेरी जिंदगी,
हर वक़्त को जियेगी,
फिर तुझको तो वक्त में,
जीवन की छवि दिखेगी,
वक़्त भी तेरे वक़्त को,
सौगातों से भर देगा,
तब देखना हर वक़्त तेरा,
वक़्त वक़्त पर दिखेगा।

               -अनुराधा यादव

Sunday, February 17, 2019

भारत की नींव

इम्तिहान सब्र का न ले,
पाक ओ ना पाक,
बांध जो टूटा तो,
हो जायेगा तू खाक,
उदार देश भारत को,
शिष्टता की इबारत को,
की कोशिश गिराने की,
पर है नहीं पता तुझे,
भारत की नींव है न,
तेरे हिलाने की,
इस नींव में है समाई,
रामा कृष्णा की अच्छाई ,
युगपुरुष श्री गाँधी की,
उदारता ,प्रेम और सच्चाई,
अशफ़ाक, भगत और बिस्मिल की,
निज देश से विदाई,
शक्ति उन शहीदों की,
देशहित में जिसने जान तो गँवाई,
इस नींव को हिलाने में ,
पूरी शक्ति लग जायेगी जमाने की,
फिर भी जड़ें न हिलेंगी भारत की,
जो इस धरा पर एक सौगात है,
उसको नष्ट करने की,
ओ पाक! तेरी क्या औकात है।

                        -अनुराधा यादव
               

Saturday, February 16, 2019

सरस्वती मां

वरदायिनी, फलदायिनी,
स्वरदेवी , वीणावादिनी,

मम हृदय में निवास कर,
संताप मेरे माता हर,

सुखरंजनी, भवभंजनी,
मां श्वेत वस्त्र धारिणी,

पावन पतित कर मन मेरा,
शक्ति से भर दे तन मेरा,

दुःख हारिणी ,जगतारिणी,
मां श्वेत हंस सवारिणी,

निस्वार्थ सतपथ पर चलूँ,
सद्कर्म मैं करती रहूँ,

ज्ञान की भण्डारिणी,हे माता विद्यादायिनी,
हो कमलपद पर सुशोभित हे कमलपद्मसिनी,

सच,प्रेम ,निष्ठा,कर्मशीला,शान्तिदूता मैं बनूँ,
इतनी शक्ति दीजिए कुछ देशहित में कर सकूँ।

                           -अनुराधा यादव

Friday, February 15, 2019

वीरों की शहादत

रुन्द गया गला नम आँख हुई,
भारत माँ ने सुधि बुधि खोई,
जब बेटों की काया के चीथड़े,
भारत माँ की गोदी में पड़े,
गंगा मइया भी सिसक रही,
बेटों के आलिंगन करे कैसे,
जो देश की सेवा में तत्पर थे,
उनका ये त्याग सहे कैसे,
मन है विचलित हर भारतीय का,
सबका तो लहू है खौल उठा,
उन वीरों को जिसने जन्म दिया,
उन माताओं की गोद कहे,
जीवनसाथिन जो साथ चले,
उसकी तो सूनी माँग कहे,
बच्चे जो चलते उंगली पकड़,
उन सबका तो बचपन ये कहे,
वो पिता जो आस लिए बैठा,
उसके तो गुमसुद चक्षु कहें,
वीरों की शहादत व्यर्थ न जाये,
हर भारतीय ऐसे कर्म करे,
आतंकवाद को सबक सिखाये,
हर भरतीय कमर कसकर बैठे,
हर वीर का बदला लेने को,
जिम्मेदार जो वीरों की शहादत का,
उसको तो दंड दिलाने को,
भारत ने जो वीर शक्ति गंवाई,
हम कर पाएंगे न भरपाई,
पर खून का बदला खून होगा
जिसमें न करेंगे कमताई।

            -अनुराधा यादव

Thursday, February 14, 2019

खतरे में मानवता

हर रोज थके हारे नैना,
जिनको पड़ता सब कुछ सहना,
देखते हैं अतिक्रमण मानव का,
क्योंकि आज के इस युग में,
मानव को खतरा मानव का,
गुरुदासपुरा, अनंतनाग,
उरी और अब पुलवामा,
आतंकवाद ने खुलकर तो,
है खूब मचाया हंगामा,
मानवता को शर्मसार किया,
भारत के वीर सपूतो को,
मौत के घाट उतार दिया,
ओ धर्म के रखवालों सुन लो,
पहले कुछ सद्कर्म तो तुम कर लो
अल्लाह के बनाये बंदों की,
छीन रहे हो  जिंदगी,
फिर भी कहते हो अल्लाह से,
की तुम कर रहे हो बन्दगी,
धर्म हमेशा कहता है,
तुम हर प्राणी का त्राण करो,
हर एक तमन्ना पूरी होगी,
तुम प्राणी मात्र से प्यार करो,
पर कलियुग में तो जीवन का,
मानव ने समझा मोल नहीं,
क्योंकि  मानव को खतरा मानव का,
इस खतरे का कोई तोल नहीं।

               अनुराधा यादव

Wednesday, February 13, 2019

भारत की संस्कृति

जिस देश हमने जनम लिया,
जहां हमने अपना कर्म किया,
उस देश की सोंधी माटी में,
हर एक नदी हर घाटी में,
प्रेम, विनय और सहिष्णुता,
सहयोग , समन्वय और एकता,
की खुशबू कभी आती थी,
इस विश्व के हर देश को ,
यह खुशबू लुभाती थी,
पुरुषोत्तम राम यहां जनमें,
आदर्श स्थपित किया जग में,
अनुशासनप्रिय वो सत्यनिष्ठ,
क्षमाशील, आज्ञाकारी,
कर्तव्यनिष्ठ वो युगद्रष्टा,
विनयशील थे सदाचारी,
कृष्णा ने यहां स्वयं आकर,
हर घर में तो जा जा कर,
करना प्रेम सिखाया था,
तब भारत के हर प्राणी ने,
मिल प्रेम राग तो गाया था,
भारत की संस्कृति है महान,
सुसभ्य समुन्नत और जग त्राण,
पर आज के भारतवासी को,
अपनी संस्कृति का भान नहीं,
है रखा गौण इस जीवन में,
मिलता है तभी निदान नहीं,
अभी दूसरों की संस्कृति है हावी,
पर क्या होगा जीवन भावी,
इसका तो अभी उन्हें ज्ञान नहीं,
पर इन सबके परिणामों से,
आएगा बचाने कोई वरदान नहीं।

                       -अनुराधा यादव

Tuesday, February 12, 2019

भारत के गाँव

हर कोई है यहाँ समान,
बड़ों का करते सब सम्मान,
हर एक का दुःख हैं बंटाते,
दुःखियो को ढाँढस बंधवाते,
बाँटते सुख सबके साथ,
उन सब मे  है प्रेम विश्वास,
सादा भोजन खाते हैं,
स्वस्थ शरीर बनाते हैं,
प्रिय पेय है दूध इन सबका,
लेते हैं भर लोटा गटका,
दही, छाछ ,मक्खन और घी,
अनिवार्य रूप से लेते पी,
ताकतवर बन जाते वीर,
स्वास्थ्य है उनकी जागीर,
सुबह से शाम सब करते काम,
चौपाल लगे जब होती शाम,
सब मिलकर वो बातें करते,
सबकी सुनते अपनी कहते,
हर एक व्यक्ति में प्रेम भाव है,
सहयोग में तत्पर रहने का स्वभाव है,
जहाँ पीपल, बरगद की होती छाँव,
वो हैं भारत के प्यारे गाँव।

                  -अनुराधा यादव

Monday, February 11, 2019

विवाह संस्कार

है बंधन पवित्र वो,
दो प्रेमियों का चित्र वो,
विश्वास की एक डोर से,
रहते बँधे मन,हृदय दो,
उस संस्कार से है पनपती,
सुसभ्य,विकसित संस्कृति,
सत्य और विश्वास के,
सदगुणों से परिपूर्ण है,
प्रेम तो इस रीति के,
लिये तो महत्वपूर्ण है,
रिश्तों और नातों में,
स्थान इसका उच्च है,
हम जानते, हर एक रिश्ता,
समक्ष इसके तुच्छ है,
संसार के संचालन में,
सृष्टि के पालन में,
ये ही तो है सहायक,
पावन पतित फलदायक,
बंधन बंधा जो प्रेम का,
सत्य व्रत और नेम का,
वो विवाह संस्कार है,
जिससे पुनीत संसार है।

         -अनुराधा यादव

Sunday, February 10, 2019

नारी

सहो मत ज़ुल्म ज़माने का, रखो अपने मे तुम वीरता,
लड़ो हक के लिए अपने, बनो अपने में तुम मीरा,
जमाने की इन रूढ़ियों से तुम्हें तो मुक्त है होना,
तुम्हें फिर से तो है बनना , रानी लक्ष्मी और इंदिरा।

निम्न समझे जो नारी को, गलतफहमी वो रहता,
आदि और अंत है नारी, सृष्टि की तो है निर्माता,
ओ ! नारी, शक्ति को अपनी तुझे फिर से है लौटाना,
दिखाना है तुझे जग को, कि कितनी है तेरी क्षमता।

मिटा दे देश से अपने,विखंडित होने का खतरा,
वही कर कर्म तू अपना, बढ़े जिससे अग्रसरता,
तेरी हर चाह हो ऐसी, शर्मिंदा ना पड़े होना,
ओ! नारी अबला से तुझको,अब बनना है सबला।

                                 -अनुराधा यादव

Saturday, February 9, 2019

मतदाता जागरूकता

अगर चाहिए तुम्हें देश में,
शासन सत्ता चले रेस में,
कुछ ऐसा तुम काम करो,
मतदाता मतदान करो।

अपना अधिकार जान लो तुम,
प्रतिनिधि अपना एक चुन लो तुम,
अपने मत की पहचान करो,
मतदाता मतदान करो।

एक नागरिक , एक वोट है,
जनतन्त्र में स्वतंत्र सोच है,
जिसको चाहो तुम दान करो,
मतदाता मतदान करो।

जीने की वो राह दिखाता,
हर साधन उपलब्ध कराता,
उस देश का तुम भुगतान करो
मतदाता मतदान करो।

चाचा-चाची, दादा-दादी सब पोलिंग बूथ पे जाओ तुम,
EVM मशीन की, जी चाहे बटन दबाओ तुम,
जिस दिन वोट पड़ें बूथ पे, बस इतना तुम काम करो,
मतदाता मतदान करो।

घूँघट में छिपीं महिलाओं सुन लो,
तुम भी अपने अधिकार समझ लो,
18 बरस की होते ही तुम देश की मतदाता हो,
अब मतदाता बन मतदान करो।

                -अनुराधा यादव

Friday, February 8, 2019

कृषक

सिर पर पगड़ी, हाथ में लाठी,
हल बैल हैं उसके साथी,
मेहनत करता वो सुबह से शाम,
वो है भारत का कृषक महान।

उत्पादन अनाज का करता,
पूरे देश का पोषण करता,
सबका तो है रखता ध्यान,
वो है भारत का कृषक महान।

प्रकृति से वह जुड़ा हुआ है,
उसी के बलवूते खड़ा हुआ है,
प्रकृति भी करती उसका सम्मान,
वो है भारत का कृषक महान

आधुनिकता के चक्र में फंसकर,
दोहन हुआ प्रकृति का डटकर,
प्रकृति के रोष का,है करता कृषक भुगतान,
वो है भारत कृषक महान।

                    - अनुराधा यादव

Thursday, February 7, 2019

प्रियतम

गुलों की ए फ़िजा बोलो तुम्हें किसने तो है भेजा,
कहा किसने संदेशा ये मेरे प्रियतम तक ले जा,
ये तेरी गुमसुदी मुझको हर घड़ी है रही तड़पा,
संदेशा है जो प्रियतम का वो सच-सच है मुझे कह जा।

फ़िज़ाओं के तो पीछे ही आ रहा कारवाँ देखा,
किसी के आज आदर में झुका वो आसमाँ देखा,
दिशायें आज तो चारों मिल रहीं एक में मानो,
जब प्रियतम को मैंने तो तिरंगे में लिपटा देखा।

                                  -अनुराधा यादव

Wednesday, February 6, 2019

ज़माना

फूंकती थी एक दिन माँ,
फूंकनी से चूल्हा,
बिना थके हर दिन में,
वो काम करती पूरा,
हर रोज तो सुबह उठ के,
पीसती चक्की से चून,
चाहे दिसम्बर जनवरी हो,
या हो महीना जून,
मेहमान देवता समान था तब,
अजनबियों का भी सम्मान था तब,
प्रेम और सौहार्द से,
जीवन परिपूर्ण था,
प्राणी मात्र की सेवा में ही,
जीवन सम्पूर्ण था,
हर व्यक्ति तब श्रमशील था,
उस समय का मानव पुरुषार्थी बलवीर था,
पर आज के समाज की,
परिस्थिति कुछ और है,
समाज में तो स्वार्थता है,
सदाचार तो गौण है,
चूल्हे का स्थान,
गैस सिलेंडर ने ले लिया,
लगभग हर काम घर का,
मशीनों पर निर्भर हुआ,
सम्मान अजनबियों का क्या,
अपनों के लिये समय नहीं,
समन्वय और सहयोग की,
अब जीवन में जगह नहीं।

              -अनुराधा यादव

Tuesday, February 5, 2019

प्राण वायु

जिसकी है हरदम जरूरत,
इस मुदित संसार में,
जो मदद करती हमारी,
रक्त के संचार में,
वो प्राण वायु व्याप्त है,
इस समूचे संसार में,
वो हमारी देह को,
शक्तियों से भरती है,
हमको तो सारे दोषों,
से दूर रखती है,
पर आज के संसार में,
प्राण वायु की कमी हुई,
जो शेष रह गई है,
वो अशुद्धता में दबी हुई,
त्राण करती थी प्राण का,
वो आज जीवन है छींनती,
हर जीव के शरीर को,
रोगों से है बींधती,
इस वायु की अशुद्धता का,
कारण बस मानव है,
पूर्ण करने को अपनी जरूरत,
वो बन गया आज दानव है,
मनुष्य अपनी स्वार्थता में,
इतना तो अंधा है,
वो प्रकृति को नष्ट करना,
मानता तो धंधा है।

               -अनुराधा यादव
             

Monday, February 4, 2019

रुई का ढेर

ये ढेर रुई का आसमान में कहाँ से आया,
इतना बड़ा ढेर तो किसने यहाँ लगाया,

मानो गिरि ये बना हुआ है,
आसमान में खड़ा हुआ है,

ये गद्दे जैसा मखमली,
कोमलता अपने में रख ली,

सूरज भी तो दुबक गया है,
इस रुई के ढेर में गुम गया है,

कोई खेल ये ढेर खेल रहा है,
मन मस्त मगन हो विचर रहा है,

तभी आसमान से बूंदे आईं,
मुझे लगा, बूँदों ने की कोई लरिकाईं,

लेकिन जब बूंदों को गिरते देर हो गई,
पानी से जब गली भर गई,

तब दादा जी ने समझाया,
ये तो बादल था, जिसने पानी बरसाया।

                         -अनुराधा यादव

Sunday, February 3, 2019

हिमालय

अचल स्थिर वो खड़ा है,
जगत में सबसे बड़ा है,

सुनती हूँ पृथ्वी से उसकी दास्तां को,
चोटियां तो छू रहीं हैं आसमां को,

वस्त्र धारण हैं किए उसने धवल,
लगता है अभी-अभी पहने नवल,

आदित्य अपनी रश्मियां बिखेरता है जब,
श्रृंगार ये तो करता है रश्मियों से तब,

चंद्रमा की चांदनी बढ़ती है इसकी धवलता,
तब इसके सौंदर्य की बढ़ती है प्रबलता,

संसार में इस दृश्य की ,
कोई जगह है ना मिली,

गंगा का निर्माण कर्ता,
पालनपोषण वो ही करता,

अपने में वृद्धि करना जिसका तो काम है,
सुदृश्य, कर्णप्रिय है जो हिमालय उसका नाम है।

                          -अनुराधा यादव

Saturday, February 2, 2019

मानव

संसार के संजाल में,
मानव घिरा हर हाल में,

हैं यहाँ सब एक जैसे,
फिर भी छोटे बड़े हैं साक में,

यहां लाखों करोड़ो जीव है
पर मनुज उत्कृष्ट बुद्धि,है आगे उत्पात में,

उसका हर जीव पर तो है नियंत्रण,
पर मानव का मन नहीं है हाथ में,

प्रकृति जो पालन कर्ता,डर नहीं है उसे,
इसके साथ करने खिलवाड़ में,

प्रकृति के चक्षुओं से अश्रु धारा बह रही,
नष्ट मेरे होने से तू रहेगा किस हाल में,

पर मनुज न समझे,
न कमी कर रहा अपनी चाल में,

संसार के संजाल में ,
मानव घिरा हर हाल में।

              -अनुराधा यादव

Friday, February 1, 2019

गीत गुनगुनाएं

आओ सभी हम मिलकर यही गीत गुनगुनाएं,
स्वरूप जिंदगी का हम प्रेम से सजाएं,
प्रभात हर किसी का आशामयी बनाएं,
हर शाम को तो हम खुशियों की समां जलाएं,
गर कोई है दुखी तो उसे ढाँढस बंधाये,
आंसू तो उसके पोंछ कर मानवता दिखाएं,
रूढ़िवादिता, आडम्बरों से जागरूक हो जाएं,
इस समाज की समस्या को मिल कर सुलझाएं,
हर एक के हित हेतु खुद को सजग बनाएं,
अवगुणों को त्याग कर सद्गुण अपनाएं,
प्रेम को इस संसार में व्यापक बनाएं,
खुद भी जियें इसके लिए,सबको जीना सिखाएं,
आओ सभी हम मिलकर यही गीत गुनगुनाएं।

                        -अनुराधा यादव