Wednesday, January 2, 2019

मेरी मित्र

देख करके मैं उसे एकटक हो गई,
परखने के लिए मैं उसे बेखटक खो गई,
जांच परख कर तय हुआ यह,
इस अकेले रास्ते में मित्र मेरी होगी वह,
मित्रता का हाथ मैने नहीं बढ़ाया था अभी,
सोचती मैं बस यही,क्या वह दोस्त  बन पाएगी कभी,
वह सलोनी खूबसूरत छवि एक दिन पास मेरे आ गई,
बात करते-करते वह मुझे मीत अपना बना गई,
पास उसके है एक सादगी का चोला,
चेहरा उसका ओजपूर्ण पर है भोला,
विद्वता को देखकर लगती है विदुषी,
पर बचपना जब करती है तब आती है हँसी,
माता-पिता की लाडली वो,
क्षमतावान लड़की जो,
मैंने जिसकी क्षमता लखी,
अब वह है मेरी प्यारी सखी।

2 comments: