Friday, January 4, 2019

आज का आदमी

उदर है इतना बड़ा कि क्षुदा मिटती ही नहीं,
सन्तुष्टता जीवन में इसके है कहीं शामिल नहीं,
भरी तिजोरी रत्नों से है इसके लिये लाज़मी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।

प्रेम और विश्वास के भी रूप परिवर्तित हुए,
विश्वासघात, धोखा के रूप में अवतरित हुए,
प्रेम कहानियां आज की बन गईं हैं दानवी,
ये रूप धारण है किये आज का ये आदमी।

निस्वार्थता तो लगता, जीवन से इसके मिट गई,
विवेक,धैर्य,नम्रता समाज से छिटक गई,
रिश्तों और नातों की बस रह गई है बानगी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।

माता-पिता की इनको आज जरुरत है नहीं,
उन जन्मदाता दानियों की  कद्र इसने की नहीं,
आशीष जिनकी एक-एक है पतित पावनी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।
   
                                   -अनुराधा यादव

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