Sunday, January 6, 2019

आलसी शेर

एक विपिन था बहुत घना,
जैसे तम्बू कोई तना,
कई तरह के पशु-पक्षी थे,
कई तरह के वृक्ष खड़े थे,
एक शेर था मोटा ताजा,
जो था उस जंगल का राजा,
वह करता जंगल पर राज,
इतराता वह पहन के ताज,
जब से मिला राज उस वन का,
तब से किया न प्रयोग निज तन का,
एक दहाड़ में भोजन आता,
फिर बड़े चाव से उसको खाता,
और पड़े पड़े वह मौज उड़ाता,
समय बड़ा और उम्र ढ़ली जब,
शरीर में फुर्ती रही नही तब,
बंद हो गया उसका भोजन,
सूख गया था उसका तन,
पशु पक्षी सब जान गए थे,
उसके आलस को पहचान गए थे,
वह शेर कभी न आएगा,
न हमको शिकार बनाएगा,
शेर के जब ये समझ में आया,
आलस ने उसे गुलाम बनाया,
जिसके कारण जंगल पर से उतर गया है डर का साया,
तब आलस की जंजीरें तोड़ी,
हाथों में पड़ी बेड़ियां खोलीं,
आलस से आजाद हुआ जब,
चुस्त दुरुस्त शरीर हुआ तब,
स्थापित किया राज अपना,
और सम्भाल लिया ताज अपना,
अब पशुओं में डर था छाया,
हुआ ये कैसे उनके समझ न आया।

                                - अनुराधा यादव

No comments:

Post a Comment