Monday, January 21, 2019

आकाश

है असीमित वो अपरिमित,
फिर भी लगता वो है सीमित,
है नही आधार उसका,
फिर भी तो है वह टिका,
अगम्य अपार शक्तियों से,
अच्छाई बुराई विपत्तियों से,
दामन है उसका भरा,
फिर भी वह सबके ऊपर है खड़ा,
सूरज और चाँद को समेटे है गोद में,
तारे भी टिमटिमाते हैं उसके प्रमोद में,
हर द्वीप और हर देश पर,
महासागर और अन्य शेष पर,
छत की तरह छाया हुआ,
ये सृष्टि के निर्माता के हाथ से बनाया हुआ,
शून्य तो मानव ने इसको ही माना,
आकाश, नभ, व्योम के तो नाम से इसको है जाना।

                                      -अनुराधा यादव

No comments:

Post a Comment