Thursday, January 3, 2019

फूल

था उपवन में एक फूल,
जो अहंकार में रहता चूर,
क्योंकि था वह सबसे ऊपर ,
सबसे प्यारा सबसे सुंदर,
पर अंदर उसके था अवगुण एक,
हँसता था छोटे फूलों को देख,
उन फूलों का मजाक उड़ाता,
बात-बात पर उन्हें चिढ़ाता,
रंगबिरंगी पंखुड़ियों पे वह इतना इतराता है,
जिनको तो वह आसमान का इंद्रधनुष बतलाता है,
खुशबू के तो बारे में वह यहां तक कहता है,
तुलना करें जिससे खुशबू की,वह शब्द समझ न आता है,
उसे गर्व अपनी खुशबू पर,
पर ध्यान न देता अहं की बू पर,
जिससे औरों का दम घुट रहा है,
अपना लावण्य लुट रहा है,
प्रकृति ने जब फूल का देखा अहंकार,
तब प्रकृति के मन में आया एक विचार,
अहंकारी इस फूल को सबक हमें सिखाना है,
हीन भावना छोटे फूलों की हमें मिटाना है,
उसी रात आया तूफ़ान,
जिसने भरी अनोखी उड़ान,
सुबह हुई देखा उपवन में,
छोटे फूल सजे थे क्रम में,
पर पदच्युत था अह्मी फूल,
जिसका था वह सुंदर रूप,
शूलों पर वह गिरा हुआ था,
पीड़ा से वह कराह रहा था,
देखा उसने नज़र उठाकर,
छोटे फूल थे उससे ऊपर,
अब तो उसके समझ आ गया,
अहंकार भी चूर हो गया,
प्रकृति ने तब आकर पूछा,
बनोगे क्या पहले जैसे फूल,
तब फूल ने शीश नवाकर,
कहा नहीं करूंगा अब ऐसी भूल।
                             -अनुराधा यादव

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