है जरूरत आज जिसकी,
बहुत चाह है आज उसकी,
जीवन तो बंध गया है उससे,
मानव अधूरा है बिन उसके,
इस जीवन की भाग दौड़ में,
सफलता पाने की होड़ में,
मानव इतना व्यस्त हुआ है,
की रिश्तों का मानो अंत हुआ है,
सहयोग प्रेम का अंत जब आया,
मानव ने ये यन्त्र बनाया,
ये तो मोबाइल फोन कहाया,
अब परदेश रहते बेटे को,
पिता माता सुन सकते हैं,
रिश्ते नाते जो बिछड़ गए,
उनसे फिर से जुड़ सकते हैं,
पर मोबाइल का परिपक्व रूप जब आया,
इसने रिश्तों पर कहर है ढाया,
अब फुर्सत जब मिलती कार्यों से,
स्मार्ट फ़ोन पर समय बिताते हैं,
खाना पीना से लेकर वो सोने तक,
स्मार्ट फ़ोन ही चलाते हैं,
न रही कद्र रिश्तों की अब,
मानव खुश अपने में ही अब।
-अनुराधा यादव
Monday, January 28, 2019
मोबाइल फ़ोन
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