Thursday, January 10, 2019

मेरा हर दिन

आज भी तो मैं उठी थी,
बृह्ममुहूर्त में मैं जगी थी,
सोच रही थी क्या करूँ मैं,
नींद काबू कैसे करूं मैं,
तब नींद ने तो आघोष में मुझे ले लिया,
चिर स्वप्न के तो देश में पहुंच दिया,
अपनी रश्मियां बिखेरने लगा था भास्कर,
जो मुझको जगा रहीं थीं झरोखे से आकर,
आंख जब खुली तो मुझे देर हो गई,
पछता रही थी मैं दुबारा क्यों सो गई,
जब है नही नियंत्रण मुझपर ही मेरा,
तो क्या करूंगी जीवन में, जिसमें है संघर्ष घनेरा,
कैसे करूंगी स्वप्न पूरा जो अपनों ने देखा,
क्यों करती हूँ मैं हमेशा नियमों को अनदेखा,
यह सोचते हुए मन में ख्याल आया,
दिमाग ने मुझे तो एक उपाय सुझाया,
क्यूँ न करूं मै कार्य उस वक्त ऐसा,
जब आलस ने मेरे ऊपर डाला हो डेरा,
जिसे सोच कर केवल खुशी जितनी मिली,
उससे कहीं ज्यादा खुशी तो तब हुई,
जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी,
अब तो बनाया है एक नियम मैने,
कुछ रचनात्मक जरूर करना है हर दिन में।

                                   -अनुराधा यादव

No comments:

Post a Comment