Thursday, January 31, 2019

सद्गुणी इंसान की चाहत

हमें संघर्षशाला से ,
निकल जाना ही अच्छा था,
मशक्कत की थी बंधने की,
पर बिखर जाना ही अच्छा था,
बिखरते सद्गुणों को अब,
प्रसारित और हम करते,
सीखते लोग गुणों से जब,
देशहित में वो अच्छा था।

हमारे देश की संस्कृति ,
बनी रहती तो अच्छा था,
विश्वगुरुता भारत की ,
बनी रहती तो अच्छा था,
कोई हिन्दू, कोई मुस्लिम,
मजहबी देश भारत ये,
हमारे सद्गुणों से ये,
संभल जाता तो अच्छा था।

             -अनुराधा यादव

Wednesday, January 30, 2019

लक्ष्य

है मुझे जिस लक्ष्य को पाने की चेष्ठा,
जिस लक्ष्य से उद्देश्य तक पहुंचने की मनसा,
उस लक्ष्य की एक और सीढ़ी,
जो कठिन नहीं बस है थोड़ी सी सीधी,
आज चढ़ने जा रही,
लक्ष्योन्मुखी मैं खुद को आज खुश पा रही,
तैयार हूँ मैं कमर कस कर,
गुरु और माता-पिता का आशीष लेकर।...................

                       - अनुराधा यादव

Tuesday, January 29, 2019

इंसान बन ले

मिला है तन ये मानव का,
थोड़ा उपकार तू कर ले,
जी रहा अहम के मद में,
वही अभिमान तू तज दे,
अनेकों मार्ग जीने के ,
सत्य का मार्ग तू चुन लें,
मानवीयता दिखा कर के,
थोड़ा इंसान तू बन ले।

हिमाकत कर रहा है जो,
थोड़ा उससे तू उबर ले,
सृष्टि पालक के नियमों का,
थोड़ा सम्मान तू कर ले,
यहाँ सब एक जैसे हैं,
सभी से प्रेम तू कर ले,
जिंदगी चार दिन की है,
इसे आनन्द से जी ले।

            -अनुराधा यादव

Monday, January 28, 2019

मोबाइल फ़ोन

है जरूरत आज जिसकी,
बहुत चाह है आज उसकी,
जीवन तो बंध गया है उससे,
मानव अधूरा है बिन उसके,
इस जीवन की भाग दौड़ में,
सफलता पाने की होड़ में,
मानव इतना व्यस्त हुआ है,
की रिश्तों का मानो अंत हुआ है,
सहयोग प्रेम का अंत जब आया,
मानव ने ये यन्त्र बनाया,
ये तो मोबाइल फोन कहाया,
अब परदेश रहते बेटे को,
पिता माता सुन सकते हैं,
रिश्ते नाते जो बिछड़ गए,
उनसे फिर से जुड़ सकते हैं,
पर मोबाइल का परिपक्व रूप जब आया,
इसने रिश्तों पर कहर है ढाया,
अब फुर्सत जब मिलती कार्यों से,
स्मार्ट फ़ोन पर समय बिताते हैं,
खाना पीना से लेकर वो सोने तक,
स्मार्ट फ़ोन ही चलाते हैं,
न रही कद्र रिश्तों की अब,
मानव खुश अपने में ही अब।
 
                      -अनुराधा यादव

Sunday, January 27, 2019

माता का लाडला

आज भी सुबह हुई जब,
धरा उज्जवलित हुई जब,
माता के लाल ने जब आंख खोली,
होंठो पे मुस्कान थी बोलता तोतली बोली,
माता तो खुश थी लाल की शरारतों पर,
मांग उसकी रहती थी उसके सर आंखों पर,
पापा का प्राणों प्यारा,
माता की आंखों का तारा,
छीन लिया भगवान ने,
वो घर का सितारा,
माता अनजान थी,
छिन गया था लाल उसका,
इस बात को न मानती,
जिस बगीचे के फूल को,
सींचती थी बनके माली,
वो फूल उसकी गोद को,
कब कर गया था खाली,
पागल हो रही माता ,
उसको न कुछ सुहाता,
बस एक रट लगाए है,
लाला तू एक बार बस गोद में आजा.................।

               -अनुराधा यादव

Saturday, January 26, 2019

पतंग

हरी, गुलाबी, काली, पीली,
लाल, सफेद, केसरिया, नीली।
आसमान में उड़ी पतंग,
बच्चों में है भरी उमंग,
बच्चे तो सब झूम रहे हैं,
उड़ा पतंग वो खूब रहे हैं,
ढांचा पतंग का कितना प्यारा,
देख रही है वो जग सारा,
दो अस्थियों का शरीर बना है,
कागज का तो चर्म चढ़ा है,
उसे नियंत्रित करने को,
मार्ग सही बतलाने को,
बंधा एक धागा मजबूत,
पतंग से जिसका रिश्ता अटूट,
पूँछ तो इसकी लहराती है,
आसमान में बलखाती है,
पतंगें दो जब करें लड़ाई,
एक दूजे पर करें चढ़ाई,
युद्ध चले तब तक अविराम,
जब तक आता ना परिणाम,
एक पतंग का मनोबल टूटा,
धागे से है रिश्ता छूटा,
अब स्वतन्त्र उड़ती अनजान,
अब न भरती नई उड़ान।

             -अनुराधा यादव

Friday, January 25, 2019

आजादी

अशफ़ाक़ भगत आजाद की,
कुर्बानी के बाद ही,
हमने तो आजादी पाई,
झाँसी की रानी लक्ष्मी ने,
सीने पर गोली थी खाई,
सुभाष चंद के आगे तो,
गोरों की तनिक न चल पाई,
इंग्लैंड में जाकर ऊधम ने,
डायर के सीने में गोली घुसाई,
भारत की शान लौटाने को,
खड़े रहे सावरकर भाई,
सरदार पटेल ने गोरों के,
सीने में थी आग लगाई,
गांधी ने सत्य अहिंसा से,
गोरों को थी धूल चटाई,
इन वीरों की देशभक्ति से,
अंग्रेजों ने मुंह की खाई,
भारत माँ के वीर सपूतों ने,
आजादी हमको दिलवाई।

          -अनुराधा यादव

Thursday, January 24, 2019

देश की पुकार

हमारा देश भारत है हाथ गैरों के कभी था,
जान देकर जान लेकर जिसे वीरों ने है जीता,
जमाने हैं गए बीते मगर ये याद तुम रखना,
भारत मात का आँचल संजोकर है तुम्हें रखना।

अखंडता देश में हो यही बापू का सपना था,
प्रेम हर मजहबी में हो यही बापू के सपना था,
मजहबी बनने से पहले भारतीय है तुम्हें बनना,
देश को सम्प्रदायों से बचाके है तुम्हें रखना,

मिला अधिकार है मत का प्रयोग जिसका तुम्हें करना,
अपने कर्तव्य को समझे वो प्रतिनिधि है तुम्हें चुनना, तुम्हारा देश कैसा हो ये निर्णय है तुम्हें करना,
सफल निर्णय लेने को प्रयोग मत का तुम्हें करना।

                                    -अनुराधा यादव
  

Wednesday, January 23, 2019

मेरी सिद्दी


है अनोखी और निराली,
इस दुनियां में सबसे प्यारी,
है वो सबकी बड़ी दुलारी,

प्रेम करती है वो सबसे,
सबकी खड़ी सहायक बनके,
कोई चाह न रखती है किसी से,

विश्वास के आभूषणों से सजी है वो,
विवेक और नम्रता में पगी है वो,
स्वतंत्र है पर बन्धन में बंधी है वो,

प्रेम ही बंधन है जिसका,
ध्यान रखती है वो सबका,
हर एक है दोस्त उसका,

चेहरे की मासूमियत से,
साफ स्वच्छ उसकी नियत से,
मैं वाकिफ़ पूरी तरह से,

माता की प्यारी वो दुहिता,
विश्वासमयी उसकी है सुचिता,
वह तो है बहुदर्शिता,

हर कार्य करने में है सक्षम,
निर्णय लेने में वो है उत्तम,
पूर्ण कार्य करने के लिए,करती थोड़ा सा परिश्रम,

इरादों की वो पक्की है,
पर थोड़ी सी जिद्दी है,
वही तो मेरी सिद्दी है।

              -अनुराधा यादव

Tuesday, January 22, 2019

गुरु

हर ग्रंथ ने हर पंथ ने,
हर विद्वान ने हर संत ने,
हर ऋषि मुनि भगवंत ने,
गुरु के गुणों का किया बखान,
स्मरण करते ही जिसको,
शब्द निकलता है सम्मान,
भगवान के पद से है ऊपर,
संदेह न इसमें है तिलभर,
जीवन की इस बागडोर को,
जीवन के हर एक छोर को,
शुद्ध स्पष्ट बनाता है,
इस समाज में रहने का हुनर हमें सिखाता है,
अंधकारमयी इस जीवन में,
दुःख से परिपूर्ण इस जीवन में,
गुरु ज्योति पुंज बन आता है।

                      -अनुराधा यादव

Monday, January 21, 2019

प्रेम

प्रेम इस संसार का एक अनोखा भाव है,
जिसका समूचे संसार मे प्रभाव है,
प्रेम वितरित है धरा पर,
संचरित है आसमां पर,
सबके दिलों में बास इसका,
चाहे अग्रज हो या हो पिछड़ा,
ये दो दिलों को जोड़ता है,
नफ़रत से ये मोड़ता है,
हर दिल के तार का,
जीवन के सार का,
प्रेम ही रहस्य है,
ये गुणों के परिवार का सदस्य है,
प्रेम रहना है सिखाता,
रिश्तों का मतलब बताता,
प्रेम तो इस जीवन का है पूरक,
इससे ही जीवन बनता है उद्देश्यपरक।

                            -अनुराधा यादव

आकाश

है असीमित वो अपरिमित,
फिर भी लगता वो है सीमित,
है नही आधार उसका,
फिर भी तो है वह टिका,
अगम्य अपार शक्तियों से,
अच्छाई बुराई विपत्तियों से,
दामन है उसका भरा,
फिर भी वह सबके ऊपर है खड़ा,
सूरज और चाँद को समेटे है गोद में,
तारे भी टिमटिमाते हैं उसके प्रमोद में,
हर द्वीप और हर देश पर,
महासागर और अन्य शेष पर,
छत की तरह छाया हुआ,
ये सृष्टि के निर्माता के हाथ से बनाया हुआ,
शून्य तो मानव ने इसको ही माना,
आकाश, नभ, व्योम के तो नाम से इसको है जाना।

                                      -अनुराधा यादव

Saturday, January 19, 2019

सजनी

आज सजनी सज रही थी,
प्रेम में वो पग रही थी,
माँग सिंदूर सुहाग का,
जिसमें भरा विश्वास था,
त्याग की मेंहदी रचाई,
नाम प्रियतम के रखाई,
झंकार पायल से आ रही थी,
जो प्रियतम को बुला रही थी,
विनम्रता का पहना है चोला,
प्रेम का चूनर है ओढ़ा,
सज रही थी  शांवरी वो
मन में खुश थी बावरी वो,
आश्चर्य से पूंछता है दर्पण,
आज क्यों किया है मेरा दर्शन,
तब तो वह हँस के है बोली,
दिल की बात उसने है बोली,
था गया जो सरहद पर,
मुझ प्रेमिका का प्रेम तज कर,
जंग जीत ली है उसने,
देश को दी है जीत उसने,
आज मेरा है रोमांचित तन मन,
क्योंकि आ रहा है मेरा प्रियतम।

                   -अनुराधा यादव

Friday, January 18, 2019

उज्ज्वलता का प्रभाव

रात अंधेरी इठला रही थी,
सबको अपना बना रही थी,

तिमि तो ऐसे छा रहा था,
मानो कभी न जाना था,

चौथा पहर जब बीता है,
तिमि को लगा वह जीता है,

पर काल ऊषा का आया है,
ज्योति का संदेश लाया है,

तिमि तो हार मानकर,
अपना समय न जानकर,

गुम गया ऊषा काल में,
तब आँख खोली सूरज ने इस संसार में,

उज्ज्वल, तेज, प्रकाश से संसार प्रकाशवान हुआ,
संसार के हर जीव में सक्रियता का संचार हुआ।

                                   -अनुराधा यादव

Thursday, January 17, 2019

भारत का हर जवान

रहते खड़े वो सरहदों पर रातभर,
रक्षा हमारी करते वो जागकर,
सामना करते हैं हर तूफान का,
ये त्याग धैर्य है हर जवान का।

ज़मीर दुश्मनों की कांप जाती है,
जब भारत के वीरों की बात आती है,
लगता है देव लड़ने आया है आसमान का,
ये वीरता और शौर्य है हर जवान का।

बचाते हैं वो हर घर की बाती को,
अब तक बचाके रक्खा है देश की थाती को,
उपहार देश को वो देते हैं बलिदान का,
ये स्वदेश प्रेम है हर जवान का।

                      -अनुराधा यादव

Wednesday, January 16, 2019

मित्रता


है अनोखा एक रिश्ता,
जीवन में आता एक फ़रिश्ता,
विश्वास की एक डोर जिसको,
करती है जीवन में शामिल,
सदमित्र तो विश्वास से ही होता है हासिल।

मित्रता तो प्रेम की अनोखी है दासतां,
जलती है जिसमें विश्वास की हर समां,
कृष्ण और सुदामा ने इसका,
आदर्श किया स्थापित,
विश्वासमयी मित्रता है विश्वासघात की कातिल,
सदमित्र तो विश्वास से ही होता है हासिल।

त्याग और बलिदान की,
मित्रता के मान की,
रक्षा में सहयोग तो है माहिर,
नाराजगी तो होती है पर,
इसमे नफ़रत नहीं है शामिल,
सदमित्र तो विश्वास से ही होता है हासिल।

हर खुशी को बाँटता,
दुःख में तो साथ देता,
पर जीवन की हर घड़ी में जो हो न शामिल,
वो लोग वाकई में मित्रता के न काबिल,
सदमित्र तो विश्वास से ही होता है हासिल।

                       -अनुराधा यादव

Tuesday, January 15, 2019

बस मुझको इतना दीजिये

हे दयानिधि सर्वद्रष्टा,
बस मुझको इतना दीजिये,
मैं चलूं सद्मार्ग पर,
बस इतनी शक्ति दीजिये,
वायु से इतना मैं मांगूँ,
संचार सत्य का कीजिये,
जल हमारा जीवन रक्षक,
उससे मैं इतना ही मांगू,
कि शुद्धता का संचार कीजिए,
पवित्रता का अग्नि द्योतक,
मुझको भी पावन कीजिए,
व्योम से इतना मैं मांगू,
मुझे बढ़ने की शक्ति दीजिए,
है धरा आधार सबका,
ढो रही है भार सबका,
हे हमारी पालनकर्ता,
ढो सकूँ मैं भार निज कर्तव्य का,
आशीष इतना दीजिये,
हे प्रभु इतना चाहूँ मैं,
सद्मार्ग पर चलती रहूं मैं,
सद्कर्म तो करती रहूं मैं,
सबके जीवन कोष को खुशियों से भरती रहूं मैं,
स चाह इतनी दीजिये,
हे दयानिधि सर्वद्रष्टा,
बस मुझको इतना दीजिये।

               - अनुराधा यादव

Monday, January 14, 2019

हिंदुस्तान

ओ भारत माँ के वीर सपूतो,
तुम आज जी रहे अपने लिये,
भारत माँ तो सिसक रही है,
बेटों के झगड़े के लिए,
इस बैर भाव की अग्नि का,
क्या ज्ञात तुम्हें परिणाम नहीं,
नाम का भारत तो होगा पर विश्व गुरु हिंदुस्तान नहीं।

देश विकास करे कैसे,
जहां एक वर्ग कुवेर बन गया है,
भ्रष्टाचार घोटाले रुके कैसे,
जहाँ चौकीदार ही चोर बन गया है,
देश का विकास अवरुद्ध हुआ,
हो तुम इससे अनजान नहीं,
नाम का भारत तो होगा पर विश्वगुरु हिन्दुस्तान नहीं।

ओ सत्ता के मद में मस्त,
कुछ काम करो भारत के लिए,
अब तो अपनी आंखें खोलो,
जी लो थोड़ा भारत के लिए,
देखो अपनी सत्ता में नैतिक मूल्य ही क्या,
क्या मर रहा इंसान नहीं,
नाम का भारत तो होगा पर विश्वगुरू हिंदुस्तान नहीं।
    
                                      -अनुराधा यादव

Sunday, January 13, 2019

इंद्रधनुष

काले बादल घिर आये थे,
अँधियारा संग में लाये थे,

गुस्से में वो गरज रहे थे,
रिम-झिम रिम-झिम बरस रहे थे,

तब एक बादल का हुआ गुस्सा शांत,
चला गया वो वहाँ से तुरंत,

सूरज तो अब दिखने लगा था,
किरणें अपनी बिखेरने लगा था,

तभी आसमान में देखा,
प्रकृति का वो दृश्य अनोखा,

सतरंगी जो रंगा था रंग में,
जैसे रंग भरे हों तरंग में,

बहुत ही प्यारा दृश्य मनोहर,
प्रकृति ने रखा है जिसे संजोकर,

चापाकार धनुष के जैसा,
ध्यान में आया मुझको सहसा,

कल शिक्षक ने पढ़ाया जो,
वही तो है ये इंद्रधनुष वो।

                    -अनुराधा यादव

Saturday, January 12, 2019

शिक्षा

लाल आंखें खोल कर,
तिमि को तो पीछे छोड़ कर,
रवि ने तो ली है अँगड़ाई,
उठ जा प्यारे अब तो तू भी,
कर ले थोड़ी सी पढ़ाई,
ज्ञान अर्जित कर ले तू,
जो है तेरे लिए विहित,
विद्या धन ही एक है,
जिसमें सभी हैं सुख निहित,
संसार के इस पाश से जो,
मुक्त कराएगी तुझे,
इस अगम्य अपार संपत्ति का,
कुछ अंश धारण करना है तुझे,
संघर्षमय जीवन की यह कम तो करेगी गरुआई,
दूर इस जीवन से होगी कष्टदायनी बुराई,
प्रेम का संचार होगा,
खुशियों का उद्गार होगा,
शिक्षा से ही तो इस संसार का उद्धार होगा।

                                     -अनुराधा यादव

Friday, January 11, 2019

अब्दुल कलाम

भोर हुई सूरज निकला था,
दिन वो 15 अक्टूबर 1931 का था,
भारत में जन्मा एक सितारा,
बिखेर रहा था वह मुस्कान,
भारत माँ का सच्चा बेटा, वह था वीर अब्दुल कलाम।
गम्भीर कुशल था धैर्यवान वह,
विनम्रशील था बुद्धिमान वह,
सीख ली उसने वह जब भी हारा,
किया परिश्रम था अविराम,
भारत माँ का सच्चा बेटा, वह था वीर अब्दुल कलाम।
जीवन किया समर्पित उसने,
भारत माँ की सेवा में,
पाँच मिसाइलें बनाईं उसने,
वृद्धि की देश की शक्ति में,
कायल उसका था जग सारा,
उसका जग में था सम्मान,
भारत माँ का सच्चा बेटा, वह था वीर अब्दुल कलाम।

                                   -अनुराधा यादव

Thursday, January 10, 2019

मेरा हर दिन

आज भी तो मैं उठी थी,
बृह्ममुहूर्त में मैं जगी थी,
सोच रही थी क्या करूँ मैं,
नींद काबू कैसे करूं मैं,
तब नींद ने तो आघोष में मुझे ले लिया,
चिर स्वप्न के तो देश में पहुंच दिया,
अपनी रश्मियां बिखेरने लगा था भास्कर,
जो मुझको जगा रहीं थीं झरोखे से आकर,
आंख जब खुली तो मुझे देर हो गई,
पछता रही थी मैं दुबारा क्यों सो गई,
जब है नही नियंत्रण मुझपर ही मेरा,
तो क्या करूंगी जीवन में, जिसमें है संघर्ष घनेरा,
कैसे करूंगी स्वप्न पूरा जो अपनों ने देखा,
क्यों करती हूँ मैं हमेशा नियमों को अनदेखा,
यह सोचते हुए मन में ख्याल आया,
दिमाग ने मुझे तो एक उपाय सुझाया,
क्यूँ न करूं मै कार्य उस वक्त ऐसा,
जब आलस ने मेरे ऊपर डाला हो डेरा,
जिसे सोच कर केवल खुशी जितनी मिली,
उससे कहीं ज्यादा खुशी तो तब हुई,
जब मैंने अपनी पहली कविता लिखी,
अब तो बनाया है एक नियम मैने,
कुछ रचनात्मक जरूर करना है हर दिन में।

                                   -अनुराधा यादव

मेरी बहन

है वो प्यारी बड़ी दुलारी,
रिश्तों की कड़ी में सबसे न्यारी,
हर वक्त करे जो मुझे सहन,
वो है मेरी प्यारी बहन।

हर समय शरारत मैं करती,
हर रोज तो उससे मैं लड़ती,
फिर वो करती मेरी पहल,
वो है मेरी प्यारी बहन।

वह सीधी सच्ची मूरत है,
भोली मासूम सी सूरत है,
जो स्थापित करती शांति अमन,
वो है मेरी प्यारी बहन।

पापा की वो सबसे प्यारी,
मम्मी की वो बड़ी दुलारी,
उनका महकता उससे चमन,
वो है मेरी प्यारी बहन।

                    -अनुराधा यादव

Tuesday, January 8, 2019

बिखरता देश

जाति-पांति की आंधियों से,
है देश पहले से विकल,
मजबूत जड़ों इनकी से,
नींव देश की हो रही निर्बल,
भेदभाव , ऊंच नीच,
दूरी बढ़ाते लोगों के बीच,
और ग्लानि,द्वेष ,पीड़ा का,
क्रोध,अहम,असहिष्णुता का,
जन्म इससे होता है,
और भारत में खंडता का डर व्याप्त होता है,
फिर भी कुछ प्रशासकों ने,
कुर्सी के याचकों ने,
सवर्ण के टुकड़े किये,
इस जाति व्यवस्था के खंड तो हैं कर दिए,
एक सवर्ण गरीब है तो एक बन गया अमीर,
सवर्णों के बीच में भी खींची है एक लकीर,
अमीर गरीब की खाई को और भी बढ़ा दिया,
उनको लगता है कार्य पावन हमने किया,
है यदि देश को बचाना ,
तो पड़ेगा जाति पांति मिटाना,
जब हम केवल मानव जाति होंगे,
मन में उत्थान के विचार होंगे,
जब सब भारतीयों का साथ होगा,
तभी तो भारत का विकास होगा।

                         -अनुराधा यादव

Monday, January 7, 2019

नेता देश के भक्षक

आजाद भगत की कुर्बानी से,
विस्मिल अशफाक की जिंदगानी से ,
इस देश ने आजादी पाई,
पर इस देश के नेताओं ने,
इसकी कद्र कभी न कर पाई।

किसके घर में चूल्हा न जला,
सोचता है कोई क्या नेता भला,
होकर शिकार कुपोषण के ,
रोज मर रहे लाल और माई,
इन भारत माँ के प्यारों की,
नेताओं को सुधि कभी न आई।

वो कुर्सी के दीवाने,
कार्य करें सब मनमाने,
पद पाने के लिए आज तो,
जूझ रहे है भाई-भाई,
भारत मां के लिए ज्यादा,
इससे क्या होगा दुखदाई।

पदवी जब मिल जाती है,
तब भरी तिजोरियां जातीं हैं,
घोटाला करते हैं ये सब,
खा जाते हैं पाई - पाई,
जूझ रही इस भारत माँ पर,
निर्दयियों को दया न आई।

वीर शहीद होते सीमा पर,
निज देश की रक्षा करते अपना लहू बहाकर,
इन वीरों की शहादत पर,
हर एक की आंखें भर आईं,
पर नेताओं की गद्दारी ने,
वीरों की शहादत बेकार गंवाई।

                   -अनुराधा यादव

Sunday, January 6, 2019

आलसी शेर

एक विपिन था बहुत घना,
जैसे तम्बू कोई तना,
कई तरह के पशु-पक्षी थे,
कई तरह के वृक्ष खड़े थे,
एक शेर था मोटा ताजा,
जो था उस जंगल का राजा,
वह करता जंगल पर राज,
इतराता वह पहन के ताज,
जब से मिला राज उस वन का,
तब से किया न प्रयोग निज तन का,
एक दहाड़ में भोजन आता,
फिर बड़े चाव से उसको खाता,
और पड़े पड़े वह मौज उड़ाता,
समय बड़ा और उम्र ढ़ली जब,
शरीर में फुर्ती रही नही तब,
बंद हो गया उसका भोजन,
सूख गया था उसका तन,
पशु पक्षी सब जान गए थे,
उसके आलस को पहचान गए थे,
वह शेर कभी न आएगा,
न हमको शिकार बनाएगा,
शेर के जब ये समझ में आया,
आलस ने उसे गुलाम बनाया,
जिसके कारण जंगल पर से उतर गया है डर का साया,
तब आलस की जंजीरें तोड़ी,
हाथों में पड़ी बेड़ियां खोलीं,
आलस से आजाद हुआ जब,
चुस्त दुरुस्त शरीर हुआ तब,
स्थापित किया राज अपना,
और सम्भाल लिया ताज अपना,
अब पशुओं में डर था छाया,
हुआ ये कैसे उनके समझ न आया।

                                - अनुराधा यादव

Saturday, January 5, 2019

इंसानियत

दर्द समझे दूसरों का,
दुःख दूर करे दुःखियों का,
सच्ची नियत है जिसके हर काम की,
वही इंसानियत है इंसान की।

घबराए न मुसीबत में,
धैर्य रखे इस पल में,
जो परवाह करे दूसरों के मान की,
वही इंसानियत है इंसान की।

हो कितना धनवान चाहे,
हो कितना सम्मान चाहे,
पर जो जिंदगी जिये न अभिमान की,
वही इंसानियत है इंसान की।

सहायक बने जरूरतमंद का,
जिसके गुणों से बिखरे स्वच्छंदता,
जो इज्जत करे विद्वान की,
वही इंसानियत है इंसान की।

                      -अनुराधा यादव

Friday, January 4, 2019

आज का आदमी

उदर है इतना बड़ा कि क्षुदा मिटती ही नहीं,
सन्तुष्टता जीवन में इसके है कहीं शामिल नहीं,
भरी तिजोरी रत्नों से है इसके लिये लाज़मी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।

प्रेम और विश्वास के भी रूप परिवर्तित हुए,
विश्वासघात, धोखा के रूप में अवतरित हुए,
प्रेम कहानियां आज की बन गईं हैं दानवी,
ये रूप धारण है किये आज का ये आदमी।

निस्वार्थता तो लगता, जीवन से इसके मिट गई,
विवेक,धैर्य,नम्रता समाज से छिटक गई,
रिश्तों और नातों की बस रह गई है बानगी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।

माता-पिता की इनको आज जरुरत है नहीं,
उन जन्मदाता दानियों की  कद्र इसने की नहीं,
आशीष जिनकी एक-एक है पतित पावनी,
ये रूप धारण है किये आज का यह आदमी।
   
                                   -अनुराधा यादव

Thursday, January 3, 2019

फूल

था उपवन में एक फूल,
जो अहंकार में रहता चूर,
क्योंकि था वह सबसे ऊपर ,
सबसे प्यारा सबसे सुंदर,
पर अंदर उसके था अवगुण एक,
हँसता था छोटे फूलों को देख,
उन फूलों का मजाक उड़ाता,
बात-बात पर उन्हें चिढ़ाता,
रंगबिरंगी पंखुड़ियों पे वह इतना इतराता है,
जिनको तो वह आसमान का इंद्रधनुष बतलाता है,
खुशबू के तो बारे में वह यहां तक कहता है,
तुलना करें जिससे खुशबू की,वह शब्द समझ न आता है,
उसे गर्व अपनी खुशबू पर,
पर ध्यान न देता अहं की बू पर,
जिससे औरों का दम घुट रहा है,
अपना लावण्य लुट रहा है,
प्रकृति ने जब फूल का देखा अहंकार,
तब प्रकृति के मन में आया एक विचार,
अहंकारी इस फूल को सबक हमें सिखाना है,
हीन भावना छोटे फूलों की हमें मिटाना है,
उसी रात आया तूफ़ान,
जिसने भरी अनोखी उड़ान,
सुबह हुई देखा उपवन में,
छोटे फूल सजे थे क्रम में,
पर पदच्युत था अह्मी फूल,
जिसका था वह सुंदर रूप,
शूलों पर वह गिरा हुआ था,
पीड़ा से वह कराह रहा था,
देखा उसने नज़र उठाकर,
छोटे फूल थे उससे ऊपर,
अब तो उसके समझ आ गया,
अहंकार भी चूर हो गया,
प्रकृति ने तब आकर पूछा,
बनोगे क्या पहले जैसे फूल,
तब फूल ने शीश नवाकर,
कहा नहीं करूंगा अब ऐसी भूल।
                             -अनुराधा यादव

Wednesday, January 2, 2019

मेरी मित्र

देख करके मैं उसे एकटक हो गई,
परखने के लिए मैं उसे बेखटक खो गई,
जांच परख कर तय हुआ यह,
इस अकेले रास्ते में मित्र मेरी होगी वह,
मित्रता का हाथ मैने नहीं बढ़ाया था अभी,
सोचती मैं बस यही,क्या वह दोस्त  बन पाएगी कभी,
वह सलोनी खूबसूरत छवि एक दिन पास मेरे आ गई,
बात करते-करते वह मुझे मीत अपना बना गई,
पास उसके है एक सादगी का चोला,
चेहरा उसका ओजपूर्ण पर है भोला,
विद्वता को देखकर लगती है विदुषी,
पर बचपना जब करती है तब आती है हँसी,
माता-पिता की लाडली वो,
क्षमतावान लड़की जो,
मैंने जिसकी क्षमता लखी,
अब वह है मेरी प्यारी सखी।