Tuesday, April 30, 2019

नीड़ चिड़िया का

उड़ रही हूँ आज खुश हो,
हूँ लिए मैं साथ सुख को,
लक्ष्य पूरा हो गया,
नीड़ मेरा बन गया।

होगी वारि से सिंचित धरा जब,
शरण इसमें लूंगी मैं तब,
आसरा एक बन गया,
नीड़ मेरा बन गया।

चारों दिशाएं जब कंपेंगी,
कोहरे में खुद को ढंकेंगी,
उसके लिए ये त्राण मेरा बन गया,
नीड़ मेरा बन गया।

               -अनुराधा यादव

Monday, April 22, 2019

क्यों

इस निरीह संसार में,

मैं सोचती हर बार में,

मै सफल जीवन जियूँ,

फिर भी कठिनता जिंदगी से,

है नहीं जाती ये क्यूँ।

हर वक्त इसमें चाहत संघर्ष की,

पर मैं दबी हूँ बोझ में दर्प की,

सोचती आनंद का रस मैं पियूँ,

पर चाहतें इस जिंदगी से,

है नहीं जातीं ये क्यूँ।

                    - अनुराधा यादव

जिंदगी है क्या तेरी

जिंदगी में जिंदगी से,
हसरत है क्या तेरी,

जिंदगी को जिंदगी से,
आशा है क्या तेरी,

जिंदगी में जिंदगी के लिए,
प्रवृत्ति है क्या तेरी,

जिंदगी जीने के लिए,
जागृति है क्या तेरी,

जिंदगी से जिंदगी ने,
चाहा है क्या तेरी,

जिंदगी ने  जिंदगी से,
सीखा है क्या तेरी।

           -अनुराधा यादव
           

कुर्सी की चाह

है कुर्सी की दौड़ हर तरफ,

खींचातानी पड़ी हर तरफ,

बैठने को खड़ा प्रत्येक,

पर कुर्सी है केवल एक,

कड़ी मशक्कत करते हैं सब,

साम दाम अपनाते सब,

लगे चक्कड़ी नेताओं की,

कसर निकल रहि सेवाओं की,

होड़ में कुर्सी पाने की,

कर लेते हैं साझेदारी,

हाथ में सत्ता पाने को,

मंजूर है ये कुर्सी आधी,

कुर्सी के ही चक्कर में,

लड़ रहे गठबंधन, पप्पू और मोदी,

अपना बहुमत बनवाने को,

हर घूमे गली बड़ी छोटी।

                  -अनुराधा यादव

जागृति

जीवन एक संघर्ष है,

समझा भी है जाना भी है।

संघर्ष ही इस जीवन में है,

इस सत्य को माना भी है।

कभी सुख यहाँ कभी दुःख यहाँ,

पर हर परिस्थिति में तुमको,

सामंजस्य तो बिठाना भी है।

यदि खुद को सफल बनाना है,

तो आलस्य रोग और दोषों को,

निज जीवन से भगाना भी है।

इस सकल समूचे चराचर में,

अलख प्रेम की जगाना भी है।

गर मनसा विश्व बंधुत्व की है,

तो हर एक मानव के मन में,

सद्भावना लाना भी है।

          -अनुराधा यादव

Friday, April 19, 2019

सच्ची जिंदगी

हर कदम ऐसे रखो,
कि शूल गलती का ना चुभे,
पद चिन्ह ऐसे छोड़ दो,
जो समाज को प्रेरित करे,
सज ले, संवर ले,
या नहा ले तू इत्र से,
पर सगुणों से है सुंदरता,
और सुगन्ध है सच्चरित्र से,
ढोंग, अंधभक्ति से,
खुद को बचाये रखना,
विश्वास और निज शक्ति से,
खुद को सजाये रखना,
अनमोल है ये जिंदगी,
जी ले पूरे जतन से,
कुविचार, पाप प्रवृत्ति का,
मैल धो दे तू मन से।

              -अनुराधा यादव

Tuesday, April 16, 2019

झरोखा

काठ का चोला है पाया,
चर्म धातु का चुराया,
चमकता पॉलिश लगाकर,
फिर एक कपड़े से छुपाया।

सोते हुए मुझको जो पाया,
रवि रश्मियों को है बुलाया,
रश्मियां मुझपर गिरा कर,
नींद से मुझको जगाया।

गर गर्मी ने मुझको सताया,
उसने तुरत घूंघट उठाया,
वायु को अंदर बुलाकर,
गर्मी को बाहर भगाया।

बरसात का मौसम जो आया,
बादलों का दल है आया,
वो मन लुभावन दृश्य दिखाकर,
ये झरोखा मुस्कराया।

            -अनुराधा यादव

Monday, April 15, 2019

गुलफ्शा

मासूमियत जिसमें भरी,
अब्बू की वो है परी,
संघर्षमयी ये जिंदगी,
माने खुदा की बंदिगी,
इल्तिज़ा उसकी सदा,
सद्मार्ग पर चलूँ सदा,
संवेदना इतनी भरी,
पर आलस से है खफ़ा,
जुनून उसके अक्स में,
फिर भी थोड़ी सी दुविधा के पक्ष में,
उसकी प्यारी सी मुस्कान पे,
मां बार दे निज जान है,
मां की आंखों का सितारा,
वो गुलों की है फ़िज़ा,
जिसकी चाहत कुछ करने की,
वो प्यारी सी है गुलफ्शा।

                -अनुराधा यादव

Sunday, April 14, 2019

ऊषा काल

ओस की बूंदों में लिपटी,

चादर ये घास की,

चितवत चकोर की,

चंदा से आस की,

खत्म इंतजार हुआ,

भँवरे की प्यास की,

चिड़ियों की चहक से,

पुष्पों की महक से,

रंजित है जग सारा,

क्योंकि रवि बढ़ चला,

ओर तिमि से प्रकाश की।

              -अनुराधा यादव

Saturday, April 13, 2019

संघर्ष

संघर्षमयी संसार में,
स्वार्थपन की आड़ में,
कोशिश तुझे गिरने की,
हर कोई करे हर बार में।

गर चाहिये खुशी साकार में,
तो मजबूती कर आधार में,
चाहत जो सफलता पाने की,
तो परिवर्तन के व्यवहार में।

जीवन की लूटमार में,
मत बैठना तू हार में,
हर बाजी इस जीवन की,
तू खेलना हर हाल में।

                      -अनुराधा यादव

Friday, April 12, 2019

मन

जलधि रूपी जीवन में,
नौका एक है तन ये,

मन नाविक है बन के बैठा,
जो चाहे वो करता रहता,

ज्वार आता जब भी है,
प्रभाव दिखाए तब ही यह,

मात देता लहरों को,
निराधार करता महरों को,

बस दिशाहीन होकर के,
विवेक अपना खोकर के,

स्वतंत्र घूमता है,
बस खुद में झूमता है,

संयम नियम जो खुद का,
एक चाबुक बस उसका,

काबू में उसको लाता,
मुश्किल से जो मिल पाता।

              -अनुराधा यादव

Thursday, April 11, 2019

घटा का घट

श्याम वर्ण पहना लिवास,

लगता जैसे मेहमान खास,

आवाज भयंकर लिये हुए,

तीव्र गर्जना करता है,

जब क्रोध में निकले चिंगारी,

मानो विद्युत का झटका है,

घट अति विशाल है किए हुए,

जो सहस्त्र घटों से भरे हुए,

घन का घट जब नयनों देखा,

जिसका कोई न है लेखा,

घट जीवों का बैठा जाता,

किसने तो है इसको भेजा।

                      - अनुराधा यादव

Wednesday, April 10, 2019

विद्यालय

विद्या अर्जन हो यहाँ,
सत्य दर्शन हो यहाँ,
ईमान, निष्ठा , प्रेम की,
हर वक्त वर्षा हो यहाँ,

न कोई छोटा यहाँ,
न दोष अमीरी का यहाँ,
बस एक मानव जाति की,
बात होती है यहां,

गुरु की गुरुता है यहां,
हर समस्या का हल यहाँ,
जीवन को सरलता से जीने की,
मिलती सुगम है विधि यहाँ,

मिलता है आनन्द वहाँ,
होता है विद्यालय जहाँ।

               -अनुराधा यादव

Monday, April 8, 2019

परिवर्तन

परिवर्तन शील है यह समाज,
माना सबने इसको है आज,
समाज से इस परिवर्तन ने,
दूसरों की संस्कृति अर्जन ने,
स्व संस्कृति आज भुला दी है
मानो चिर निद्रा में सबने,
संस्कृति तो कहीं सुला दी है,
कुर्ता धोती बना कोट पैंट,
खुशबू गुलाब की बन गई सेंट,
दातून बन गया टूथपेस्ट,
ऐनक पहने बनते हैं श्रेष्ठ,
चौपाल तो कहीं खो गई है,
बस मोबाइल में दुनियां गुम हो गई है,
सहयोग,सम्मान, सत्कार, निष्ठा,
सब शांत दुखी हो देख रहे,
धन,धनिक,धुनी की है प्रतिष्ठा,
जो स्वार्थ से जीवन सेक रहे,
दूध हो गया मटमैला,
घी का तो खतम हुआ खेला,
लंहगा चोली जो पहनावा,
है उसको क्या बुलावा आया,
जो चला गया समाज से है,
तन अब छोटे वस्त्रों से साजते हैं,
हिंदी हिन्द की राजभाषा,
उसका भी महत्व घट रहा है,
अंग्रेजों की अंग्रेजी का,
दिन दिन ही जोर बढ़ रहा है।

                        -अनुराधा यादव

Thursday, April 4, 2019

स्वामी विवेकानंद जी

संसार में सद्भावना का,
विवेक, विनम्र , विद्वानता का,
जल सा प्रवाह जिसने किया,
मन तृप्त निज तप से किया,
अनुभव कराया आनन्द का,
भारत माँ का लाल,
वो विवेकानंद था।

प्रतिभा का कायल जग सारा,
हिन्द का वो न्यारा सितारा,
हिन्द की तो हिन्दवी को,
अपनी पूरी जिंदगी को,
रस्ता दिखाया उन्नति और सानन्द का,
भारत माँ का लाल,
वो विवेकानन्द था।

लोकतंत्र का महापर्व

लोकतंत्र के देश में महापर्व का उत्साह,
हर एक प्रान्त और शहर में रैलियों का प्रवाह,
कोई कहता विकास होगा,
अत्याचार का विनाश होगा,
कोई तो गरीबी हटाने को,
अपनी सरकार बनाने को,
दे रहा प्रलोभन जनता को,
जाति पांति को अपना कर,
दे रहा चुनौती समता को,
हर दल के नेता आशा से,
जनता की तरफ देखते हैं,
पर शांत, आनन्दित जनमानस,
निज मन का भेद न खोलते हैं,
किसी को इसका भान नही,
परिणामों का ज्ञान नहीं,
फिर भी हर दल पहले से ही,
अपना बहुमत बतलाता है,
हर नेता इस समय दुविधा में,
अपना ये समय बिताता है।
                      -अनुराधा यादव

जाग रे

जाग रे प्राणी जगत में,
कर ले कुछ रहते वखत में,
रेत सी इस जिंदगी में,
उस खुदा की बंदिगी में,
जी ले तू इस जिंदगी को,
वरना उलझेगी नखत में,
जाग रे प्राणी जगत में।

मैं जिंदगी से दूर कर दे,
जो जिंदगी को नष्ट कर दे,
जिससे उद्गम हो क्रोध का,
काया जीर्णित हो फ़क़त में,
जाग रे प्राणी जगत में।

पालन कर तू सत्य निष्ठा प्रेम का,
हर एक व्रत और नेम का,
अच्छाई को पहचान ले,
न भूल के तू परख में,
जाग रे प्राणी जगत में,
कर ले कुछ रहते वखत में।

                  अनुराधा यादव

एक शक्ति

ब्रह्मांड के हर नियम की,
हर चीज के संयम की,
संचालक एक शक्ति है,
निराकार वो शक्ति,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

चराचर का प्राणी कोई,
नियम भंग करता कोई,
कठोर मिलता दंड है,
निराकार वो शक्ति,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

मान ले जिस रूप में,
साकार बनती अनुरूप में,
सच्ची तेरी यदि भक्ति है,
निराकार वो शक्ति ,
कृपा कर दे तो समझो मुक्ति है।

उसकी अपार क्षमता का,
सभी के लिए समता का,
कायल तो हर एक व्यक्ति है,
निराकार वो शक्ति ,
कृपा के दे तो समझो मुक्ति है।