Wednesday, December 26, 2018

देखना तुम जनवरी भर

ओढ़ के कम्बल रजाई ठण्ड तो है आ गई,
उसको तो मेरी कंपकंपाहट भा गई,
मां कहती है ये तो है बस बानगी भर,
रूप असली देखना तुम जनवरी भर।

गर्म कपड़े है सजे सिर से पांव तक,
कँपकँपी न गई है मेरी अब तक,
रौब तो जमा रही नाराज़गी कर,
हाल क्या होगा देखना जनवरी भर।

आग के पास लोग बैठे हैं,
जुबां पे ठंड का ही नाम रक्खे हैं,
ठंड तो इठला रही है सादगी पर,
रूप मेरा देखना तुम जनवरी भर।
                        अनुराधा यादव

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