सज गई है अब धरा,
गौर से देखो जरा,
खुशियां धरा पर हैं अनंत,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।
सरसों के खेत पीले,
कह रहे हैं अब तू जी ले,
ढोल,ताल ,बाँसुरी और बज रहे मृदंग,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।
कलियों ने आंखें खोलीं,
तितलियाँ हैं इनपर डोलीं,
मधुमक्खियां तो चूसतीं इनका है मकरंद
क्योंकि अब आ गया है बसंत।
नव पात से शोभित विटप,
लताएं रहीं जिनसे लिपट,
गुँजार करते मनमस्त भृंग,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।
- अनुराधा यादव
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