Monday, December 31, 2018

नया साल

साल और बीता एक जिंदगी का,
कुछ दुःख और कुछ समय था जिसमें खुशी का,
जीवन तो सुख - दुःख का है एक जाल,
पर जीने की नई उमंगें लेकर आया नया साल।

काम करो तुम अपनी दम पर,
छोड़ो न उसको तुम किस्मत पर,
लक्ष्य को पूरा करने का रखो अपने मन में ख्याल,
क्योंकि जीने की नई उमंगें लेकर आया नया साल।

बदलाव की हमें जरूरत,
जो है इस समाज का पूरक,
इस समाज की सच्ची मूरत बनाना है हमें बड़ी संभाल,
क्योंकि जीने की नई उमंगें लेकर आया नया साल।

हर प्राणी के रक्षक बन के,
और वृक्षों के सहायक बन के,
वितरित करो खुशियां, सजा कर थाल,
क्योंकि जीने की नई उमंगें लेकर आया नया साल।

इस वर्ष को आशा से भर दो,
सबके जीवन में ख़ुशी का घर कर दो,
प्रेम भावना से शोभित हो यह आकाश और पाताल,
क्योंकि जीने की नई उमंगें लेकर आया नया साल।

                                     -अनुराधा यादव

Sunday, December 30, 2018

नील समन्दर

शांत स्थिर है स्वभाव,
जग के कल्याण का जिसका भाव,
हर गुण है समाहित जिसके अंदर,
वह है अपना नील समन्दर।

जल जीवों का पालनहारा,
नदियों का वो एक सहारा,
रोष न करता इनपर तिलभर,
वह है अपना नील समन्दर।

व्यापारियों को रस्ता देता,
मंजिल तक वह पहुंचा देता,
बदले में लेता न वह रत्तीभर,
वह है अपना नील समन्दर।

जब परिवर्तन प्रकृति में होता,
तब सागर अशान्त और क्रोधित होता,
और फैलाता शोकाकुल मंजर,
वह है अपना नील समन्दर।

                 - अनुराधा यादव

मानव की बलि वेदी

हर रोज की तरह आज भी चिडियाँ डोली,
पहले उठने की दौड़ में सूरज से पहले आंखें खोलीं,
मन मस्त मगन थी चहक रही थी,
खुशी की खुशबू से महक रही थी,
क्योंकि अब बच्चे उसके बड़े हो गए,
उनके पर पंख परिपक्व हो गए,
किन्तु नहीं संतुष्ट थी चिड़िया,
खुद दाना लाती थी बड़िया,
दाना लेने गई थी आज,
बहुत देर मिला में मिला अनाज,
दाना लेकर घर वह लौटी,
मन में खुश थी चिड़िया छोटी,
लेकिन वापस आकर देखा,
समझ न आये हुआ है ये क्या,
वही वृक्ष हुआ धराशायी,
जिस पर उसने दुनियां बसायी,
उजड़ गया था उसका घर,
प्यारे उसके गए थे मर,
चिड़िया तो अब बिलख रही है,
ईश्वर को वह कोस रही है,
चिड़िया ने वार्तालाप सुना जब,
उसने देखा उसी ओर तब,
हाथ सजे हथियारों से,
चोट कर रहे वारों से,
चिड़िया के तो समझ आ गया,
प्रकृति का कोई कहर न आया,
बस मानव की बलि वेदी पर,वह वृक्ष था गया चढ़ाया।
 
                                         - अनुराधा यादव

Friday, December 28, 2018

पानी

प्राण,जीवन, अमृत जो,
जीवन में समरथ वो,
जिस पर तो निर्भर है जीवों की जिंदगानी,
उस बसुधा के द्रव्य को कहते हैं पानी।

बारिदों से वारि आता,
जो बसुधा की प्यास बुझाता,
बसुधा तो बन गई है अब सुहानी,
उस बसुधा के द्रव्य को कहते हैं पानी।

जलचर,थलचर और नभचर सब प्राणी,
जल तो है उनके जीवन की तरणी,
फिर भी तो मानव ने उसकी कीमत न जानी,
उस बसुधा के द्रव्य को कहते हैं पानी।

उस अमृत को मानव ने विष में तो बदला है,
फिर भी तो मानव न गलतियां सुधारता है,
मानव तो कर रहा है इसकी प्रतिदिन हानी,
उस बसुधा के द्रव्य को कहते हैं पानी।

                            - अनुराधा यादव

आज की नदियों की हालत

पी कर हम घूँट जिसका,
वेग शांत करते मन का,
पवित्र जल पवित्र करता,
उद्धार प्राणियों का करता,
मैदान को जो सींचती है,
खाका भविष्य का खींचती है,
है निस्वार्थ उसकी भावना,
जो पूर्ण करती कामना,
परंतु आज एक -एक बूँद उसकी,
बन गई है जहर की,
स्वयं तो पीड़ा सहन करती है,
फिर भी हम सब की जरूरतों को पूरा करती है,
अमृत सा पानी बना दिया जहर है,
ये सब नदियों के ऊपर आदमी की महर है,
जलजीव जो हैं नदियों के,
मनमस्त हैं जो सदियों से,
अपने अस्तित्व को बचा भी न पा रहे हैं,
स्वार्थ यज्ञ में मानव के बलि चढ़ते जा रहे हैं,
अपने ही कर्मों का भोग जब मानव तो भोगता है,
तब अपने कर्म भुला के वो ईश्वर को कोसता है..........

                                         -अनुराधा यादव

Wednesday, December 26, 2018

देखना तुम जनवरी भर

ओढ़ के कम्बल रजाई ठण्ड तो है आ गई,
उसको तो मेरी कंपकंपाहट भा गई,
मां कहती है ये तो है बस बानगी भर,
रूप असली देखना तुम जनवरी भर।

गर्म कपड़े है सजे सिर से पांव तक,
कँपकँपी न गई है मेरी अब तक,
रौब तो जमा रही नाराज़गी कर,
हाल क्या होगा देखना जनवरी भर।

आग के पास लोग बैठे हैं,
जुबां पे ठंड का ही नाम रक्खे हैं,
ठंड तो इठला रही है सादगी पर,
रूप मेरा देखना तुम जनवरी भर।
                        अनुराधा यादव

Tuesday, December 25, 2018

बसंत

सज गई है अब धरा,
गौर से देखो जरा,
खुशियां धरा पर हैं अनंत,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।

सरसों के खेत पीले,
कह रहे हैं अब तू जी ले,
ढोल,ताल ,बाँसुरी और बज रहे मृदंग,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।

कलियों ने आंखें खोलीं,
तितलियाँ हैं इनपर डोलीं,
मधुमक्खियां तो चूसतीं इनका है मकरंद
क्योंकि अब आ गया है बसंत।

नव पात से शोभित विटप,
लताएं रहीं जिनसे लिपट,
गुँजार करते मनमस्त भृंग,
क्योंकि अब आ गया है बसंत।
                   - अनुराधा यादव

Monday, December 24, 2018

सांता क्लॉज बनो

है लिपटा कपडों में लाल,
25 दिसंबर को आता हर साल,
नई उमंगें खुशियों की है लेकर आता,
झूठ,बुराई,दुराचार, इसको नही भाता,
गुण हैं इसके विवेक, प्रेम और सच्चाई,
भटक न सकती इसके पास बुराई,
न रहा ठिकाना खुशियों की बच्चों का,
इच्छित उपहार आएगा दिल के सच्चों का,
बच्चे ऐसा सोच रहे थे सपने में,
मन-मुग्ध मगन है बस वो अपने में,
किसी के सपने को नहीं टूटने देना है,
सांता क्लॉज का अवतार सभी को लेना है,
जिसकी जो चाहत है वैसी भेंट करो,
प्राणी मात्र से दया भाव और प्रेम करो,
संचार करो इस दुनियां में तुम आशा का,
अंत करो इस तिमिरमयी निराशा का,
पूर्ण करो जो अपनों ने सपनें देखे,
कार्य करो यह सांता क्लॉज का रूप लेके,
मात-पिता के जीवन को खुशियों से भर दो,
इस जग की महिलाओं को जग में जीने दो,
आज के इस संसार की बस यही तमन्ना है,
प्रेम, एकता, बन्धुत्वा से सबको जीना है।
                           -अनुराधा यादव